Tuesday, October 19, 2010

एक महक बनके आ गया कोई

जीना मुझको सिखा गया कोई
दिल में मेरे समा गया कोई

उनकी फूलों के साथ तक ना बनी
यहाँ शूलों से निभा गया कोई

मेरा साया मुझे नहीं दिखता
क्या बिछड़ कर चला गया कोई

बेखबर अपने आप से थे हम
खुद से तारुफ़ करा गया कोई

आँख में बनके एक आंसू सा
मेरी पलकों पे आ गया कोई

आज आँगन मेरा खुशगवार सा है
एक महक बनके आ गया कोई

Tuesday, August 31, 2010

गए वो हर कसम उतार गए

मेरे सजदे न कुछ गुज़ार गए
गए वो हर कसम उतार गए

चाँद अपनी हथेली पर रखा
हम जब भी जिस्म के पार गए

उम्र गुजरी जो रंग छुपाने में
करके हमको दाग़दार गए

किस्मत लकीरें न मिट पायीं
दूर तक रोते भी ज़ार ज़ार गए

बाग़ की कलियाँ खिलेंगी कैसे
बागबान जिसके हो फरार गए

अपनी हस्ती पे था गरूर हमें
तेरी एक ही नज़र में हार गए

अधुरा सा सपना आधी सी जाँ
गए वो भी कर तार तार गए

ना मंजिल ना कोई हमराही
गए हर राह बेकरार गए

क्यूँ इंतज़ार है उनका 'महक'
वो जो दिल से हमें विसार गए

Wednesday, August 18, 2010

बारिश की छम छम

बारिश की छम छम जैसे मोती बरस रहे हैं 
बादल के पैरों में घुंघरू से बंध गए हैं

गरज गरज के शोर मचाये छम छम नाच दिखाए
पेड़ भी झूमे हलके हलके हो के मघन खड़े हैं

और जोर से और जोर से आज तो मेघा बरसो रे
प्यासी धरती के आँचल पे कितने दाग़ पड़े हैं

बरसो ना केवल तन पे मेरे मन में भी बरसो
विक्कारों की अगन से कितने छाले पड़े हैं

कुछ रहमत उनपर बरसाओ जिनके दिल में दर्द नहीं
कितने मासूमों के जीवन उनके क़दमों तले हैं

Friday, July 30, 2010

दिल है पर जज़्बात गुम

दिल है पर जज़्बात गुम
हाल रहें हालात गुम

हम आमने तुम सामने 
और वस्लों की रात गुम
 
छह सुर संग के साधे
पर सुर नंबर सात गुम
 

शम्मा अँधेरे में रोशन
रोशनी की बात गुम
 

जंगल में मंगल हुए
आदमी की ज़ात गुम
 

दूरियों में ख्याल था
पास तो ख्यालात गुम
 

रात तो दुल्हन बनी
खाबों की बरात गुम
 

कुछ तो दिल में है 'महक'
हो जाती है बेबात गुम





Saturday, July 24, 2010

भीगे अक्षर

भीगे अक्षर ओंस के कतरे
सोच धरा पे बिखरे बिखरे 

बादल पवन पंखेरू जैसे
नील गगन पे किसने चित्रे

बहते उड़ते खिलखिलाते
हर मोड़ पे निखरे निखरे

फूल से कोमल कांच सरीखे
कैसे कैसे जिया में उतरे

पग पग छेड़ें करें गुदगुदी 
यहाँ वहां रहते हैं उकरे

मायाजाल ये डालें ऐसा
उफ़ मेरे ना मुख से उचरे 
 
पिघली रहती इनके गिरदे
'महक' भी अक्षरमाला सिमरे

Monday, July 12, 2010

मैं यादों की परी हुई

अंदर सौ तूफ़ान भरे हैं सांस भी लूं तो डरी हुई
एक आह्ट से छलके ना प्रीत की गगरी भरी हुई


अंजानो की नगरी में मेरा मुख पहचाना सा
कितनो की आयें आवाजें खड़ी मैं सहमी डरी हुई
 

दरिया के बहते पानी संग सहजे ही मैं बह जाऊं 
गोरी चांदनी लिपटाऊ जब निकलूँ भीगी ठरी हुई
 

दूर देश कोई अपना रहता एक दिन खोज पता पाऊं   
जा पहुंचूं मैं उसके सन्मुख घूंघट तज निखरी हुई   
 

तेरी याद का काजल पाऊं क्यों फिर नैन ना मटकाऊँ
महक घुली साँसों में तेरी मैं यादों की परी हुई

Monday, July 5, 2010

जो गुज़रा है

जो गुज़रा है कुछ दे गया
जो आएगा ले सकता है
पलों को बांधे रखने में
हर कोई जी थकता है

आनी जानी माया है
क्यूँ तू फिर ललचाया है
सच्चा बोले बोल फकीरा 
कहते हैं की बकता है
 

जियादा है जो तेरे पास 
और की तू मत रखना आस
उसके दिल का हाल भी जान
जो जूठन को तकता है
 

जीवन जिसने तुझको अरपा 
तुमने उसको ही है सरपा
दो तो मीठे बोल वोह चाहे 
उसमे भी तू थकता है

फल बनता जब फूल खिले
धीरे धीरे मिठास मिले 
कच्चा ही ना तोड़ो तुम
फल हौले हौले पकता है

हर आवाज़ कान सुनते ना
सब कुछ आँख भी देखे ना
दिल से तुम महसूस करो
चुप छुप कोई सिसकता है

राम गए पर राम रहा है
कृष्ण का भी नाम रहा है
नाम कोई ईशवर नहीं होता
कर्मों का मान झलकता है

करता तू पर नाम है उसका
जो भी रखदो नाम वो उसका
'महक'  तो कागज़ का है फूल
बन खुशबू वोही महकता है

Saturday, June 12, 2010

तेरी बेरुखी के चलते

तेरी बेरुखी के चलते मेरे अरमाँ निकलते रहे
तू आकाशों पे छाया हम खाक में मिलते रहे

शब्दों की मदिरा थी जो बेसुध हमको कर गयी
कुछ पिए कुछ गिराए बहकते फिसलते रहे
 
उजाले पास थे मगर आँखों में रौशनी ना थी
जब तक जागे नींद से मंज़र बदलते रहे
 

शायद कहीं वो पथ मिले जो तुम तक पहुंचे 
पाँव में छाले थे पड़े पर आस में चलते रहे
 

जीते थे सपनों में पर अब नींदें ही उड़ गयीं
ग़मों के आईने में आंसूयों से संवरते रहे


कोई दीवाना महक का किसी को रंग भा गया
हमपे ना अपना जोर था बस यूँ ही बंटते रहे

Thursday, April 29, 2010

क्यूँ मनवा डूबा जाए रे

क्यूँ मनवा डूबा जाए रे
कौनसा गम इसे सताए रे

पत्थर से भी कड़ा है यूँ
आँखों से जल बहाए रे
 

दीवाना पतझड़ों का यह
फूलों को भी ललचाये रे
 

कानों का कच्चा है दिल तो
संग हवायों के गाये रे
 

भंवर है दिखता भंवरा
ये कैसे जाल विछाये रे
 

मुट्ठी हूँ जैसे रेत की
भर भर के फिसलाए रे
 

ये खुशबू तेरी कामिनी  
फिरे मुझको बहकाए रे

Tuesday, April 13, 2010

एक अपनी जिंदगी दे

ख़ुशी दे या ग़मी दे
पर यूँ ना उदासी दे
सीने में कुछ अरमा दे
और टूटने का सामां दे
दिल में कोई दर्द दे
ऐसी ना बेबसी दे


किसी का तू मिलन दे
किसी का विछरना दे
मन तडपाती याद दे
खाली ना त्रिष्णगी दे


कोई सपना जो ख़ुशी दे
या किसी बहाने अश्क दे
एक पराया अजनबी दे
उसकी नज़र खाली सी दे


दुःख का कोई नाम दे
कोई तो इलज़ाम दे
मेरा जुर्म तो बता दे
ऐसे तो न सजा दे


बेबात ना घुटन दे
जी को ना जलन दे
दे चाहे ग़म भरी  दे
एक अपनी जिंदगी दे
ख़ुशी दे या ग़मी दे
पर यूँ ना उदासी दे

Monday, April 5, 2010

दाग़ ए दिल छुपते नहीं छुपाने से

दाग़ ए दिल छुपते नहीं छुपाने से
ज़िक्र ले ही आयें तेरा बहाने से

कौन हो तुम और क्या हो मेरे
समझ ना पाए वो लाख बताने से

हम तो परवाने हैं तेरे नाम के
दूर जायेंगे ना अब यूँ सताने से

मोहब्बत में जल के रोशन होंगे
और महकेंगे हम खाक उड़ाने से

सजदा नहीं सर मांगे है तेरा प्यार
माने ना तू फक्त सर झुकाने से

भरी महफ़िल में उजडों से हम
खिल उठेंगे एक झलक पाने से

तू आया दिल में तो होश आया
जी उठे हैं पीकर तेरे महखाने से
 

मिटे ना हस्ती खाक में सो जाने से
जलता नहीं ग़म  दिल जलने से
 

Tuesday, March 16, 2010

मुस्कुराकर ख़ुशी का बहाना दे दिया

मुस्कुराकर ख़ुशी का बहाना दे दिया
दर्द ए दिल को नया तराना दे दिया


बेसुध पड़े हुए थे ग़मों को तान के
दिल के हाथ में एक पैमाना दे दिया


बस पिलाने में ही साकी बहक गया 
झूमके नशे में महखाना दे दिया


मांगी जो मोहब्बत की निशानी उसने
निकाल के कोई ग़म पुराना दे दिया


प्यार निभाना तो सीखे कोई आपसे
एक ही सजदे में ज़माना दे दिया


दरियादिली तो उसकी देख ना 'महक'
अपना तो ना दिया पर बेगाना दे दिया

Tuesday, March 2, 2010

तेरा मुझपर ये इलज़ाम क्यूँ है ?

तेरा मुझपर ये इलज़ाम क्यूँ है ?
फिर भी होंठों पे मेरा नाम क्यूँ है?

तोड़ डाले थे जो सब नाते पहले
बाद मुद्द्त के ये पैग़ाम क्यूँ है?

बाग़ से कोई मेरा  रिश्ता नहीं
फूल से आ रहा सलाम क्यूँ है?

मैंने खुदको मिटाया उसकी खातिर
मुझको ही कर चला बदनाम क्यूँ है?

उम्र गुजरी जिसे अपना कह कह के
आज बेगाना हुआ वो मुकाम क्यूँ है?

सूखे पत्ते सी हुई हस्ती अपनी 
निगाहों में यह अक्स ए जाम क्यूँ है?

प्यार ही प्यार जो हो बांटता रहा
रहा सख्श वो अक्सर गुमनाम क्यूँ है ?

Friday, February 19, 2010

दिल जलाएं और फिर इशारे ढूंढें

दिल जलाएं और फिर इशारे ढूंढें 
कहाँ कहाँ से इश्क के सहारे ढूंढें

रात भर गिन गिन के सहेजे थे जो
हुई सुबह तो हम वोही तारे ढूंढें 

खफा फूलों से हैं तेरे जाने के बाद
गली गली में हमको ये सारे ढूंढें

आँखों में भर भर के बेशुमार आंसू
हम अपनी ही नज़र के नज़ारे ढूंढें

कब्र में छुपे हैं उनको सताने को
देखें कहाँ कहाँ हमें  प्यारे ढूंढें

कुछ तो बात होगी अपनी भी नज़र में
ऐसे तो ना दुश्मन हमें हमारे ढूंढें

खाक छान छान के बेकारी की 'महक'
आज भी उनके दर पे गुज़ारे ढूंढें

Tuesday, February 16, 2010

मोहब्बत चीज़ क्या है


मोहब्बत चीज़ क्या है ये भला किसने यहाँ जाना
मोहब्बत करने वालों को यहाँ काफ़िर गया माना

पैगम्बर पीर आए हैं प्रेम का पाठ पड़ाने को
सौड़ी सोच में उनका कहा हमने कहाँ माना

इबादत अपने धर्मों की प्यार अपनी ही जाती का
चाहे रटते रहें कितना मानवता का अफसाना

प्रेम सागर भी नदिया भी प्रेम बूंदों सा बरसे भी
क्यूँ समझे नहीं फिर भी बूँद धारा में समाना

बनाने वाले ने दुनिया दो हाथों सी बनाई है
हसरत है जो फूलों की काँटों से भी निभाना 

मोहब्बत अच्छी बचपन की जवानी के जख्म अच्छे
आखरी मोड़ जिंदगी का शिकायत में ना बिताना

Thursday, February 11, 2010

इस शहर में


इस शहर में तेरे नाम के अफसाने बहुत हैं
कोई अपना नहीं तो क्या बेगाने  बहुत हैं

सुन सुन के तेरा नाम जीते भी हैं मरते भी
मेरे लड़खड़ाने को यहाँ महखाने बहुत हैं

तेरे सामने आके  होश कहाँ रहता मुझको
वरना तो सुनाने को दास्ताने बहुत हैं

जाने कब दिल में तेरे प्यार की सुबह होगी
इंतज़ार में गुज़रे अब तक ज़माने बहुत हैं

तू जरुर किसी खुशबू की परछाई होगा
तेरे क़दमों में विच्छे चमन सुहाने बहुत हैं

मैं हारा सा मुसाफिर तेरे प्यार की राहों का
एक से एक इस जहाँ में तेरे दीवाने बहुत हैं

सीने से लगाये रखे आंसूयों से सींचे हमने
महक बाकी है तेरी इनमे ख़त पुराने बहुत हैं

Wednesday, February 10, 2010

दिल आवारा सोच आवारा


दिल आवारा सोच आवारा
है हर तरफ झूठा पसारा

किसको दिल की बात कहें अब
आज बेगाना  है जग सारा

किससे करें शिकायत दिल की
इसको इसके ग़म ने मारा 

कोई चांदनी कोई बहारें 
हमने चुना है अश्रु  खारा

तेरी नज़र ने मन पिघलाया 
जैसे पिघला जाए पारा

किनारे पर भी खड़े प्यासे
बहती जाए निर्मल धारा

भरते रहे रेत की मुट्ठी
ऐसे गुज़रा वक़्त हमारा 

इतने में भी चैन ना आए
दे जाए कोई दर्द उधारा

Monday, February 1, 2010

चलते जा रहे हैं


उदासियों के काफिले चलते जा रहे हैं
बेचैनी के सिलसिले चलते जा रहे हैं

ख़ामोशी का तीर कोई भेदे है
मेरे लहू के जलजले चलते जा रहे हैं

आँख कान बंद लब जुड़े हुए
यूँ तन्हा दिलजले चलते जा रहे हैं

तेरी नगरी में बनके तमाशा
तेरी धुन के मनचले चलते जा रहे हैं

तंग नज़रें तोडें हसरतें
पानी के बुलबुले चलते जा रहे हैं

बेजारी बेदिली हो गयी ज़मीन से
अर्श है पैरों तले चलते जा रहे हैं

क्या ठिकाना कौन डगर चले
तेरी बेरुखी के छले चलते जा रहे हैं

ज़माने से बेखबर राह-ए-इशाक पर
एक बार जो चले चलते जा रहे हैं

Monday, January 25, 2010

मन बावरा कुछ समझ ना पाया है



धुआं धुआं सा हर तरफ छाया है
ख्याल जो उस रौशनी का आया है

तीर-ए-नज़र का निशाना हुए हम
दाग़-ए-मोहब्बत दिल पे लगाया है

नज़र से ओझल तो अँधेरा छा गया
वोह जैसे माहताब का साया है 

फिर अक्स किसी नूर-ए-जहाँ का
दिल के आईने में उत्तर आया है

ग़म तो था जब दूर वो था हमसे
आज खोकर भी हमने उसे पाया है

बन भँवरा खिलाता कांटे सा चुभता भी
हर कहीं प्यार उसका ही समाया है

खुद से दूर कीया बेचैन कीया हमको
रोये तो उसने ही चुप कराया है

इश्क क्या है कोई रोग है या दवा 
मन बावरा कुछ समझ ना पाया है

Thursday, January 21, 2010

प्यार में खुद को बेवस कीया


प्यार में खुद को बेवस कीया
दे चिंगारी दिल आतिश कीया 

बना आइना तुझे संवर गयी
तेरे रंगों ने मुझे पुर्कश कीया

तेरी कठपुतली बनके रह गयी
कैसे तुमने अपने वश कीया 

तिनकों में तू सुलगाता गया
पर मैंने उसे एक कश कीया 

जलाये थे चिराग आँधियों में
इश्क में उल्टा तरकश कीया

तुझे बेवफा भी कहूँ तो कैसे 
बर्बाद तुमने यूँ हस हस कीया

कुछ ऐसा छा गया तेरा नशा
मह थी मैं मुझे मेह्कश कीया

Tuesday, January 19, 2010

कैसे यह मेरी जुबान दिल की बातें समझाए


वोह क्या समझेंगे जो हम ही ना समझ पाए
हंसाने पे रो दिए और जख्मों पे मुस्कुराये

दाग़ ए दिल छुपा लिया खिलाके होंठ शबनमी 
नादां समझे या बेईमान जाने क्यूँ वो गुस्साए 

कुछ आदत थी हमारी कुछ उनकी मजबूरी थी
दो कदम बढाकर फिर उसी मोड़ पे लौट आये

वो शिकवे करें इलज़ाम भी हमें देते रहे 
हमने मोहब्बत की उनसे बिना कुछ भी जताए

चाहें हमको पर हमसे और क्या चाहते हैं ?
दिन रात गुज़ारे हैं हमने इन्ही प्रशनों के साए 

दिल की बातें दिल कहता सुनता समझता है
कैसे यह  मेरी जुबान दिल की बातें समझाए


Thursday, January 14, 2010

महफ़िल में रंग घुल गया है तेरे नाम का



महफ़िल में रंग घुल गया है तेरे नाम का
आज मज़ा आएगा साकी के जाम का

नज़रों में  सैंकड़ों जुगनू चमक उठे
बरसों बाद आया ख़त जो मेरे नाम का

याद आए पल जो तेरे साथ गुज़रे थे
फिर ख्याल आ गया उस तन्हा शाम का

किस बादल में मेरा चाँद छुपा बैठा  है
ऐ हवा बता दे पता उसके  मुकाम का 

यूँ तो गुलशन में गुंचे हजारों खिलते हैं
एक भी गुल ना खिला कोई मेरे नाम का

हालात काबिज़ हो गए मेरे जज्बातों पर
कोई ख़त ना लिख सकी दुआ सलाम का

ऐसे तो सूरज रोज़ बस्ती में आया कीया
 पर अँधेरा ना गया ग़ुरबत के नाम का

बिन तेरे शहर में मचा हुआ कोहराम है
गुजरता हुआ हर लम्हा लगे है हराम का

Thursday, January 7, 2010

अपनी मोहब्बत को


अपनी मोहब्बत को दिल में ही छुपा रखना
किसी की नज़र ना लगे ज़रा पर्दा रखना

बड़े भोले हैं सनम मेरे भेद ना जाने मन का
धीरे से उनके कानों में पर फुसफुसा रखना

उनकी नज़र ए कर्म जो मिल जाए मुझको
फिर कैसे कोई शिकवा कोई गिला रखना

उनकी पलकों तले सजे होंगे जो खाब मेरे
उनके हर दर्द को अपने मन में दबा रखना


जिन्दगी में कभी उनको मेरी जरुरत हो 
अपना हाथ बड़ा रखना कदम मिला रखना

असीम प्यार को देख के अभिमानी ना हों 
इस बात पे नज़र रखना दूरी ज़रा ज़रा रखना

Saturday, January 2, 2010

बहते आंसूयों का लेखा कहीं दर्ज नहीं होता


चैन नहीं आता जब तक कोई दर्द नहीं होता
आंसूयों की नमी से हर लम्हा सर्द नहीं होता

मेरी उदासियों में यूँ झलके तेरा चेहरा
जैसे मेरी बेचैनियों से ये बेगरज नहीं होता

सीने से लगा रहता है धड़कन की तरह
अपना है ये ग़म कभी बेदर्द नहीं होता

दर्द ए इश्क की दवा मिल ना पायी अभी तक
छूट जाए किसी तरह ये ऐसा मर्ज़ नहीं होता

कौन रखता हिसाब तेरी जुदाईयों के कहर का
बहते आंसूयों का लेखा कहीं दर्ज नहीं होता

दर्द दिल का किसको जाके सुनाएं हम महक
उल्फत के मारों का कोई हमदर्द नहीं होता