Friday, February 19, 2010

दिल जलाएं और फिर इशारे ढूंढें

दिल जलाएं और फिर इशारे ढूंढें 
कहाँ कहाँ से इश्क के सहारे ढूंढें

रात भर गिन गिन के सहेजे थे जो
हुई सुबह तो हम वोही तारे ढूंढें 

खफा फूलों से हैं तेरे जाने के बाद
गली गली में हमको ये सारे ढूंढें

आँखों में भर भर के बेशुमार आंसू
हम अपनी ही नज़र के नज़ारे ढूंढें

कब्र में छुपे हैं उनको सताने को
देखें कहाँ कहाँ हमें  प्यारे ढूंढें

कुछ तो बात होगी अपनी भी नज़र में
ऐसे तो ना दुश्मन हमें हमारे ढूंढें

खाक छान छान के बेकारी की 'महक'
आज भी उनके दर पे गुज़ारे ढूंढें

Tuesday, February 16, 2010

मोहब्बत चीज़ क्या है


मोहब्बत चीज़ क्या है ये भला किसने यहाँ जाना
मोहब्बत करने वालों को यहाँ काफ़िर गया माना

पैगम्बर पीर आए हैं प्रेम का पाठ पड़ाने को
सौड़ी सोच में उनका कहा हमने कहाँ माना

इबादत अपने धर्मों की प्यार अपनी ही जाती का
चाहे रटते रहें कितना मानवता का अफसाना

प्रेम सागर भी नदिया भी प्रेम बूंदों सा बरसे भी
क्यूँ समझे नहीं फिर भी बूँद धारा में समाना

बनाने वाले ने दुनिया दो हाथों सी बनाई है
हसरत है जो फूलों की काँटों से भी निभाना 

मोहब्बत अच्छी बचपन की जवानी के जख्म अच्छे
आखरी मोड़ जिंदगी का शिकायत में ना बिताना

Thursday, February 11, 2010

इस शहर में


इस शहर में तेरे नाम के अफसाने बहुत हैं
कोई अपना नहीं तो क्या बेगाने  बहुत हैं

सुन सुन के तेरा नाम जीते भी हैं मरते भी
मेरे लड़खड़ाने को यहाँ महखाने बहुत हैं

तेरे सामने आके  होश कहाँ रहता मुझको
वरना तो सुनाने को दास्ताने बहुत हैं

जाने कब दिल में तेरे प्यार की सुबह होगी
इंतज़ार में गुज़रे अब तक ज़माने बहुत हैं

तू जरुर किसी खुशबू की परछाई होगा
तेरे क़दमों में विच्छे चमन सुहाने बहुत हैं

मैं हारा सा मुसाफिर तेरे प्यार की राहों का
एक से एक इस जहाँ में तेरे दीवाने बहुत हैं

सीने से लगाये रखे आंसूयों से सींचे हमने
महक बाकी है तेरी इनमे ख़त पुराने बहुत हैं

Wednesday, February 10, 2010

दिल आवारा सोच आवारा


दिल आवारा सोच आवारा
है हर तरफ झूठा पसारा

किसको दिल की बात कहें अब
आज बेगाना  है जग सारा

किससे करें शिकायत दिल की
इसको इसके ग़म ने मारा 

कोई चांदनी कोई बहारें 
हमने चुना है अश्रु  खारा

तेरी नज़र ने मन पिघलाया 
जैसे पिघला जाए पारा

किनारे पर भी खड़े प्यासे
बहती जाए निर्मल धारा

भरते रहे रेत की मुट्ठी
ऐसे गुज़रा वक़्त हमारा 

इतने में भी चैन ना आए
दे जाए कोई दर्द उधारा

Monday, February 1, 2010

चलते जा रहे हैं


उदासियों के काफिले चलते जा रहे हैं
बेचैनी के सिलसिले चलते जा रहे हैं

ख़ामोशी का तीर कोई भेदे है
मेरे लहू के जलजले चलते जा रहे हैं

आँख कान बंद लब जुड़े हुए
यूँ तन्हा दिलजले चलते जा रहे हैं

तेरी नगरी में बनके तमाशा
तेरी धुन के मनचले चलते जा रहे हैं

तंग नज़रें तोडें हसरतें
पानी के बुलबुले चलते जा रहे हैं

बेजारी बेदिली हो गयी ज़मीन से
अर्श है पैरों तले चलते जा रहे हैं

क्या ठिकाना कौन डगर चले
तेरी बेरुखी के छले चलते जा रहे हैं

ज़माने से बेखबर राह-ए-इशाक पर
एक बार जो चले चलते जा रहे हैं