Tuesday, August 31, 2010

गए वो हर कसम उतार गए

मेरे सजदे न कुछ गुज़ार गए
गए वो हर कसम उतार गए

चाँद अपनी हथेली पर रखा
हम जब भी जिस्म के पार गए

उम्र गुजरी जो रंग छुपाने में
करके हमको दाग़दार गए

किस्मत लकीरें न मिट पायीं
दूर तक रोते भी ज़ार ज़ार गए

बाग़ की कलियाँ खिलेंगी कैसे
बागबान जिसके हो फरार गए

अपनी हस्ती पे था गरूर हमें
तेरी एक ही नज़र में हार गए

अधुरा सा सपना आधी सी जाँ
गए वो भी कर तार तार गए

ना मंजिल ना कोई हमराही
गए हर राह बेकरार गए

क्यूँ इंतज़ार है उनका 'महक'
वो जो दिल से हमें विसार गए

Wednesday, August 18, 2010

बारिश की छम छम

बारिश की छम छम जैसे मोती बरस रहे हैं 
बादल के पैरों में घुंघरू से बंध गए हैं

गरज गरज के शोर मचाये छम छम नाच दिखाए
पेड़ भी झूमे हलके हलके हो के मघन खड़े हैं

और जोर से और जोर से आज तो मेघा बरसो रे
प्यासी धरती के आँचल पे कितने दाग़ पड़े हैं

बरसो ना केवल तन पे मेरे मन में भी बरसो
विक्कारों की अगन से कितने छाले पड़े हैं

कुछ रहमत उनपर बरसाओ जिनके दिल में दर्द नहीं
कितने मासूमों के जीवन उनके क़दमों तले हैं