ख्याल जो उस रौशनी का आया है
तीर-ए-नज़र का निशाना हुए हम
दाग़-ए-मोहब्बत दिल पे लगाया है
नज़र से ओझल तो अँधेरा छा गया
वोह जैसे माहताब का साया है
फिर अक्स किसी नूर-ए-जहाँ का
दिल के आईने में उत्तर आया है
ग़म तो था जब दूर वो था हमसे
आज खोकर भी हमने उसे पाया है
बन भँवरा खिलाता कांटे सा चुभता भी
हर कहीं प्यार उसका ही समाया है
खुद से दूर कीया बेचैन कीया हमको
रोये तो उसने ही चुप कराया है
इश्क क्या है कोई रोग है या दवा
मन बावरा कुछ समझ ना पाया है