Monday, January 25, 2010

मन बावरा कुछ समझ ना पाया है



धुआं धुआं सा हर तरफ छाया है
ख्याल जो उस रौशनी का आया है

तीर-ए-नज़र का निशाना हुए हम
दाग़-ए-मोहब्बत दिल पे लगाया है

नज़र से ओझल तो अँधेरा छा गया
वोह जैसे माहताब का साया है 

फिर अक्स किसी नूर-ए-जहाँ का
दिल के आईने में उत्तर आया है

ग़म तो था जब दूर वो था हमसे
आज खोकर भी हमने उसे पाया है

बन भँवरा खिलाता कांटे सा चुभता भी
हर कहीं प्यार उसका ही समाया है

खुद से दूर कीया बेचैन कीया हमको
रोये तो उसने ही चुप कराया है

इश्क क्या है कोई रोग है या दवा 
मन बावरा कुछ समझ ना पाया है

Thursday, January 21, 2010

प्यार में खुद को बेवस कीया


प्यार में खुद को बेवस कीया
दे चिंगारी दिल आतिश कीया 

बना आइना तुझे संवर गयी
तेरे रंगों ने मुझे पुर्कश कीया

तेरी कठपुतली बनके रह गयी
कैसे तुमने अपने वश कीया 

तिनकों में तू सुलगाता गया
पर मैंने उसे एक कश कीया 

जलाये थे चिराग आँधियों में
इश्क में उल्टा तरकश कीया

तुझे बेवफा भी कहूँ तो कैसे 
बर्बाद तुमने यूँ हस हस कीया

कुछ ऐसा छा गया तेरा नशा
मह थी मैं मुझे मेह्कश कीया

Tuesday, January 19, 2010

कैसे यह मेरी जुबान दिल की बातें समझाए


वोह क्या समझेंगे जो हम ही ना समझ पाए
हंसाने पे रो दिए और जख्मों पे मुस्कुराये

दाग़ ए दिल छुपा लिया खिलाके होंठ शबनमी 
नादां समझे या बेईमान जाने क्यूँ वो गुस्साए 

कुछ आदत थी हमारी कुछ उनकी मजबूरी थी
दो कदम बढाकर फिर उसी मोड़ पे लौट आये

वो शिकवे करें इलज़ाम भी हमें देते रहे 
हमने मोहब्बत की उनसे बिना कुछ भी जताए

चाहें हमको पर हमसे और क्या चाहते हैं ?
दिन रात गुज़ारे हैं हमने इन्ही प्रशनों के साए 

दिल की बातें दिल कहता सुनता समझता है
कैसे यह  मेरी जुबान दिल की बातें समझाए


Thursday, January 14, 2010

महफ़िल में रंग घुल गया है तेरे नाम का



महफ़िल में रंग घुल गया है तेरे नाम का
आज मज़ा आएगा साकी के जाम का

नज़रों में  सैंकड़ों जुगनू चमक उठे
बरसों बाद आया ख़त जो मेरे नाम का

याद आए पल जो तेरे साथ गुज़रे थे
फिर ख्याल आ गया उस तन्हा शाम का

किस बादल में मेरा चाँद छुपा बैठा  है
ऐ हवा बता दे पता उसके  मुकाम का 

यूँ तो गुलशन में गुंचे हजारों खिलते हैं
एक भी गुल ना खिला कोई मेरे नाम का

हालात काबिज़ हो गए मेरे जज्बातों पर
कोई ख़त ना लिख सकी दुआ सलाम का

ऐसे तो सूरज रोज़ बस्ती में आया कीया
 पर अँधेरा ना गया ग़ुरबत के नाम का

बिन तेरे शहर में मचा हुआ कोहराम है
गुजरता हुआ हर लम्हा लगे है हराम का

Thursday, January 7, 2010

अपनी मोहब्बत को


अपनी मोहब्बत को दिल में ही छुपा रखना
किसी की नज़र ना लगे ज़रा पर्दा रखना

बड़े भोले हैं सनम मेरे भेद ना जाने मन का
धीरे से उनके कानों में पर फुसफुसा रखना

उनकी नज़र ए कर्म जो मिल जाए मुझको
फिर कैसे कोई शिकवा कोई गिला रखना

उनकी पलकों तले सजे होंगे जो खाब मेरे
उनके हर दर्द को अपने मन में दबा रखना


जिन्दगी में कभी उनको मेरी जरुरत हो 
अपना हाथ बड़ा रखना कदम मिला रखना

असीम प्यार को देख के अभिमानी ना हों 
इस बात पे नज़र रखना दूरी ज़रा ज़रा रखना

Saturday, January 2, 2010

बहते आंसूयों का लेखा कहीं दर्ज नहीं होता


चैन नहीं आता जब तक कोई दर्द नहीं होता
आंसूयों की नमी से हर लम्हा सर्द नहीं होता

मेरी उदासियों में यूँ झलके तेरा चेहरा
जैसे मेरी बेचैनियों से ये बेगरज नहीं होता

सीने से लगा रहता है धड़कन की तरह
अपना है ये ग़म कभी बेदर्द नहीं होता

दर्द ए इश्क की दवा मिल ना पायी अभी तक
छूट जाए किसी तरह ये ऐसा मर्ज़ नहीं होता

कौन रखता हिसाब तेरी जुदाईयों के कहर का
बहते आंसूयों का लेखा कहीं दर्ज नहीं होता

दर्द दिल का किसको जाके सुनाएं हम महक
उल्फत के मारों का कोई हमदर्द नहीं होता