बात दिल की जो बता दी खता की
तुझको मुड़ने को सदा दी खता की
माना की सब रौशनी है तेरे दम से
इंतज़ार की शमा जला दी खता की
शोख परिंदों को भाती हैं बहारें ही
मैंने उदास ग़ज़ल सुना दी खता की
ग़म बहुत छुपाया मगर बह निकला
पानी में जो आग लगा दी खता की
बियाबानों में हैं लाश अपनी ढो रहे
तेरे नाम ये जान लगा दी खता की
तन्हा काली रातों में गिनते हैं तारे
तुझे सूरज होने की दुआ दी खता की