Saturday, October 31, 2009

तुमसे मिलके


तुमसे मिलके अपनी तन्हाई याद आई
अपने जख्मों की गहराई याद आई
जब विछर गए थे तुम मुझसे
मैं हुई थी शुदाई याद आई


रंग लेके उधर फूलों से
एक चादर ख़ुशी की ओड़ी थी
झुकी झुकी सी पलकों से
गिरती अश्कों की लड़ी याद आई


तुम पास ही थे मेरे कितने
पर तुमको अपना न सकी
फिर मिले तो किस हाल में
जब हुई मैं परायी याद आई


जानती हूँ बहुत उधार हो तुम
कोई रास्ता खोज निकालोगे
फिर गीत ख़ुशी के गुन्जेंगे
तुम संग होगी विदाई याद आई


तुमसे मिलके अपनी तन्हाई याद आई
अपने जख्मों की गहराई याद आई
जब विछर गए थे तुम मुझसे
मैं हुई थी शुदाई याद आई

Thursday, October 29, 2009

तोह कोई बात बने



दिल में तो सदा ही रहते हो
सामने आओ तो कोई बात बने
सोते जागते खाब दिखाते हो
ख़ाब में आओ तो कोई बात बने

क्यूँ रहते हो पर्दानाशीनो से
क्यूँ झलक दिखलाते नहीं
किसी रोज़ प्यारे मुख से
पर्दा हटाओ तोह कोई बात बने

देते हो ग़म जुदाई के
कभी आके पास न मिलते हो
इन जख्मों से न मौत आये
सामने आओ तो कोई बात बने

जल बिन मछली मर जाए
मैं बिन तेरे क्यूँ न मरूं
हर पल रहूँ सिसकती मैं
यह राज़ बताओ तो कोई बात बने

कब तक तरसोगे मुझको
कब अपना दरस दिखाओगे
इस से पहले की जान जाए
तुम आओ तोह कोई बात बने

Wednesday, October 28, 2009

न छेड़ो ........






 

न छेड़ो जख्मों को फूलों से
इनसे अंगार बरसने दो
न दर्द की कोई दवा करो
जो रिसते हैं तो रिसने दो


आज न तुम समझाओ मुझको
आज न मेरा गिला करो
आज जो आंसू बरस रहे हैं
मत रोको उन्हें बरसाने दो




अच्छा ही किया कुछ बुरा नहीं
जो मुझसे दूर चला गया
तुम्हें पाने की तम्मना थी
अब देखन को तरसने दो


ना मन की हुई ना तन की रही
जिन्दगी बीचो बीच फंसी
ना आ पाए ना ही जा पाए
अटकती है सांस अटकने दो


मत छेड़ो मेरी आँखों को
इनमें अभी चाहत बाकी है
कबसे प्यासी तरस रही हैं
आ जाओ अब ना तरसने दो
आ जाओ अब ना तरसने दो

तेरी याद



तेरी याद दिल  से भुलाएं कैसे?
एक और दिल को ठोकर लगायें कैसे?


जब तक जिन्दा हैं मेरे अरमान
तुझसे दूर जाएँ तो जाएँ कैसे?


मैं मेरी को खूब हवा दे दी
अपनी हस्ती को अब मिटायें कैसे?


फूलों के तराने गाते रहे
काँटों से दामन छुडाएं कैसे?


बचते रहे तेरी जुल्फ के जाल से
पर तेरे साए को भगाएं कैसे?


दिल के टुकडों से तसल्ली न हुई
खुद को सूली पे चाडाएं कैसे ?


अब चुप है दिल दर्द में भी
इसको रुलाएं तोह रुलाएं कैसे ?

Tuesday, October 27, 2009

फिर वोही तन्हाई है



फिर वोही वीरानगी फिर वोही तन्हाई है
जिन्दगी फिर उसी मोड़ पे ले आई है
कोई राह नज़र आती नहीं
साथ है तो बस परछाई है

न मैंने किया वादा कोई
न मैंने किया दावा कोई
फिर क्यूँ उदास दिल है आज
क्यूँ बेकरारी छाई है

एक पल चुरा के वक़्त से
सोचा था थोडा झूम लूं
कुछ छन की ख़ुशी के लिए
लम्बी उदासी पायी है

यह कैसी उलझन है
सुलझा न पाऊं मैं
लगता है कोई फंदा है
जिसमें जान फंसाई है

रोऊँ चीखुं चिल्लाओं
पर सुन ने वाला कौन है
वक़्त से ही खुलेंगी परतें
ये वक़्त की गहराई है

जब सारी दुनिया सोती है


जब सारी दुनिया सोती है
एक खिड़की कोई खुलती है
यादों के जुगनू आते हैं
और एक महफिल सी जुड़ती है

कुछ खट्टे मीठे पल उसमें
अंगडाइयां फिर लेते हैं
कभी ख़ुशी की बारिश होती है
कभी दर्द की आंधी झूलती है

जिस पल ने हंसाया था मुझको
अब आंसू बन के आया है
इस पल के अँधेरे में
उसकी ही नमी सी घुलती है

फिर याद किसी की आई है
फिर आँख से आंसू टपका है
पर देख के उन दो नैनो को
होंठों पे हंसी भी खिलती है

जब सारी दुनिया सोती है
एक खिड़की कोई खुलती है
यादों के जुगनू आते हैं
और एक महफिल सी जुड़ती है

Friday, October 23, 2009

तेरे ख्यालों में .....





तेरे ख्यालों में मघन
मुस्कुरा रही हूँ मैं
तेरी पवन के साज़ पे
तेरे गीत गा रही हूँ मैं

तुने जो मुझको छू लिया
मैं खिल के फूल हो गयी
तेरे बदन की खुशबू है
जिसको फैला रही हूँ मैं

दुःख में भी सुख में भी
तू मेरे साथ साथ है
हर रंग तेरा हर रूप तेरा
बस देखे जा रही हूँ मैं

कभी हवा का झोंका सा
कभी तू तपती धुप है
ऊँची नीची डगर है तू
देख डगमगा रही हूँ मैं

एक बार मैं भी चल सकूं
जो तेरा हाथ थाम के
उस एक पल की आस में
दिन गिनती जा रही हूँ मैं
दिन गिनती जा रही हूँ मैं