Friday, July 30, 2010

दिल है पर जज़्बात गुम

दिल है पर जज़्बात गुम
हाल रहें हालात गुम

हम आमने तुम सामने 
और वस्लों की रात गुम
 
छह सुर संग के साधे
पर सुर नंबर सात गुम
 

शम्मा अँधेरे में रोशन
रोशनी की बात गुम
 

जंगल में मंगल हुए
आदमी की ज़ात गुम
 

दूरियों में ख्याल था
पास तो ख्यालात गुम
 

रात तो दुल्हन बनी
खाबों की बरात गुम
 

कुछ तो दिल में है 'महक'
हो जाती है बेबात गुम





Saturday, July 24, 2010

भीगे अक्षर

भीगे अक्षर ओंस के कतरे
सोच धरा पे बिखरे बिखरे 

बादल पवन पंखेरू जैसे
नील गगन पे किसने चित्रे

बहते उड़ते खिलखिलाते
हर मोड़ पे निखरे निखरे

फूल से कोमल कांच सरीखे
कैसे कैसे जिया में उतरे

पग पग छेड़ें करें गुदगुदी 
यहाँ वहां रहते हैं उकरे

मायाजाल ये डालें ऐसा
उफ़ मेरे ना मुख से उचरे 
 
पिघली रहती इनके गिरदे
'महक' भी अक्षरमाला सिमरे

Monday, July 12, 2010

मैं यादों की परी हुई

अंदर सौ तूफ़ान भरे हैं सांस भी लूं तो डरी हुई
एक आह्ट से छलके ना प्रीत की गगरी भरी हुई


अंजानो की नगरी में मेरा मुख पहचाना सा
कितनो की आयें आवाजें खड़ी मैं सहमी डरी हुई
 

दरिया के बहते पानी संग सहजे ही मैं बह जाऊं 
गोरी चांदनी लिपटाऊ जब निकलूँ भीगी ठरी हुई
 

दूर देश कोई अपना रहता एक दिन खोज पता पाऊं   
जा पहुंचूं मैं उसके सन्मुख घूंघट तज निखरी हुई   
 

तेरी याद का काजल पाऊं क्यों फिर नैन ना मटकाऊँ
महक घुली साँसों में तेरी मैं यादों की परी हुई

Monday, July 5, 2010

जो गुज़रा है

जो गुज़रा है कुछ दे गया
जो आएगा ले सकता है
पलों को बांधे रखने में
हर कोई जी थकता है

आनी जानी माया है
क्यूँ तू फिर ललचाया है
सच्चा बोले बोल फकीरा 
कहते हैं की बकता है
 

जियादा है जो तेरे पास 
और की तू मत रखना आस
उसके दिल का हाल भी जान
जो जूठन को तकता है
 

जीवन जिसने तुझको अरपा 
तुमने उसको ही है सरपा
दो तो मीठे बोल वोह चाहे 
उसमे भी तू थकता है

फल बनता जब फूल खिले
धीरे धीरे मिठास मिले 
कच्चा ही ना तोड़ो तुम
फल हौले हौले पकता है

हर आवाज़ कान सुनते ना
सब कुछ आँख भी देखे ना
दिल से तुम महसूस करो
चुप छुप कोई सिसकता है

राम गए पर राम रहा है
कृष्ण का भी नाम रहा है
नाम कोई ईशवर नहीं होता
कर्मों का मान झलकता है

करता तू पर नाम है उसका
जो भी रखदो नाम वो उसका
'महक'  तो कागज़ का है फूल
बन खुशबू वोही महकता है