Monday, February 7, 2011

मज़बूरी क्या हुई

कुछ इनसे कुछ उनसे दूरी क्या हुई
टूटे रिश्ते ये मज़बूरी क्या हुई
 
आज भी सोच के शर्मिंदा हैं
सामने उनके वो मगरूरी क्या हुई
 

घिसते दीवारों से मिट्टी होते हुए  
कट गयी उम्र वो पूरी क्या हुई
 

टूटी डाली से खोई हरियाली
जला दी पत्ती वो भूरी क्या हुई
 

राख अपनी समेटे मुट्ठी में
आग दिल में 'ये बद्स्तूरी क्या हुई ?'
 

बाँट ना पायी 'महक' मगर बंट गयी
आई जो हिस्से वो कस्तूरी क्या हुई?







Tuesday, January 11, 2011

अपनी हस्ती को मिटा के चले

अपनी हस्ती को मिटा के चले
सजदे में सिर झुका के चले

डाली एक निगाह जो खुद पे
नज़रों से नज़र चुरा के चले

अपनी आहों की आघोष में
तेरी तस्वीर छुपा के चले

तेरी रौशनी से ले एक किरण
अँधा मन रोशना के चले
 

तू दरिया है और सागर भी 
कतरे में हम समा के चले

ऐसी तेरे इश्क की धुन लगी
कि हर नफरत भुला के चले

हम तो तुझमे ही खोये रहे
कहते दिल में बसा के चले