Tuesday, March 16, 2010

मुस्कुराकर ख़ुशी का बहाना दे दिया

मुस्कुराकर ख़ुशी का बहाना दे दिया
दर्द ए दिल को नया तराना दे दिया


बेसुध पड़े हुए थे ग़मों को तान के
दिल के हाथ में एक पैमाना दे दिया


बस पिलाने में ही साकी बहक गया 
झूमके नशे में महखाना दे दिया


मांगी जो मोहब्बत की निशानी उसने
निकाल के कोई ग़म पुराना दे दिया


प्यार निभाना तो सीखे कोई आपसे
एक ही सजदे में ज़माना दे दिया


दरियादिली तो उसकी देख ना 'महक'
अपना तो ना दिया पर बेगाना दे दिया

Tuesday, March 2, 2010

तेरा मुझपर ये इलज़ाम क्यूँ है ?

तेरा मुझपर ये इलज़ाम क्यूँ है ?
फिर भी होंठों पे मेरा नाम क्यूँ है?

तोड़ डाले थे जो सब नाते पहले
बाद मुद्द्त के ये पैग़ाम क्यूँ है?

बाग़ से कोई मेरा  रिश्ता नहीं
फूल से आ रहा सलाम क्यूँ है?

मैंने खुदको मिटाया उसकी खातिर
मुझको ही कर चला बदनाम क्यूँ है?

उम्र गुजरी जिसे अपना कह कह के
आज बेगाना हुआ वो मुकाम क्यूँ है?

सूखे पत्ते सी हुई हस्ती अपनी 
निगाहों में यह अक्स ए जाम क्यूँ है?

प्यार ही प्यार जो हो बांटता रहा
रहा सख्श वो अक्सर गुमनाम क्यूँ है ?