Monday, December 28, 2009

बात दिल की जो बता दी खता की





बात दिल की जो बता दी खता की
तुझको मुड़ने को सदा दी खता की

माना की सब रौशनी है तेरे दम से
इंतज़ार की शमा जला दी खता की

शोख परिंदों को भाती  हैं बहारें ही
मैंने उदास ग़ज़ल सुना दी खता की

ग़म बहुत छुपाया मगर बह निकला
पानी में जो आग लगा दी खता की

बियाबानों में हैं लाश अपनी ढो रहे
तेरे नाम ये जान लगा दी खता की

तन्हा काली रातों में गिनते हैं तारे
तुझे सूरज होने की दुआ दी खता की

Thursday, December 17, 2009

तुझको भी अब गैर समझना आ गया



आ गया,  मुझको भी जीना आ गया
बेरहम जिंदगी का ज़हर पीना आ गया


क्या हुआ जो तुम हमारे पास नहीं
बंद करके आँखें तुझसे मिलना आ गया


उस मोड़ पर हम रह गए हैं बुत बनके
तेरा साया जहाँ से हाथ अपना छुड़ा गया


हंस हंस के दिल बहलाना दुनियां  का
और अकेले में छुप छुपके रोना आ गया


अब और कोई भी दर्द,  दर्द नहीं देता
तेरा ग़म जबसे दिल में समा गया


आज  हर कमी को हमने अपना लिया
तुझको भी अब गैर समझना आ गया

Monday, December 14, 2009

तुम आए और चले गए



तुम आए और चले गए हमने देखा यही
भूले सब जो हमने सुनी और तुमने कही

लम्बी ऋतू पतझड़
और बहारें दो दिन की
देख  मेरी हालत फिर से हो गयी है वोही

तुझको रख  दिल में फिर देखूं इधर उधर
पलकें विछाये हूँ मैं तेरा इंतज़ार कर रही

बेशक्क परवानो का अंजाम है जल जाना
पर शम्मा का सिसकना भी देखो तो सही

दूरियां ही दूरियां हैं दूर तक दिखाई देतीं
जाने क्या है किस्मत में  और क्या नहीं

खुशनसीब हैं दरिया सागर से जा मिलता
ना समझे कोई जुदाई जो किनारों ने सही


Wednesday, December 2, 2009

आँखें बंद करूँ या ना



तेरे इश्क की धुन में जाने मैं खोई कहाँ
दुन्दुं तुझको दर ब दर इधर उधर जहाँ वहां


हर गली में चुप्पी है हर मोड़ पथराया जैसे
शोर है मेरे मन का दुनियां तो पड़ी है सुंसान


फूल मुस्कुराते रहे और बहारें हंसती रहीं
किसी ने न पूछा मुझसे तू खड़ी है क्यूँ वीरां


बादल गरजे सावन बरसे बूँदें बिखरती रहीं
कोई बूँद गिर न मन पे तोडती जो मेरा गुमां

घूमी धरती अम्बर घूमे फिर भी न दीदार हुआ
थकी फिरके मारी मारी कहीं मिला न तेरा निशां

अब जाना कहीं और नहीं तुमको ही आना होगा
सपनों में आओगे या सचमें आँखें बंद करूँ या ना

Monday, November 30, 2009

महक जिन्दगी की




कमज़ोर थे हम लेकिन बलवान दिखाते रहे
वो थे महान अपनी कमजोरियां गिनाते रहे


छुपाते रहे चेहरा अपना हम  तो नकाब से
वोह झांक के आँखों में हाले दिल बताते रहे


आदतन हम चुप रहे जताया कोई हक नहीं
  वोह पूरे तन मन से हमें अपना बताते रहे


हम उनपे फ़िदा थे कह न पाए उनसे कभी
हम छुपाते रहे और वोह प्यार जताते रहे


दूरियां किस्मत समझे मिलना चाहा नहीं
हम घबराते रहे  और वोह पास आते रहे


संग संग उनके सपनों में ही गुज़रा किये
महक जिन्दगी की खाबों में ही पाते रहे

Friday, November 27, 2009

'हम भी गाईड बन गए'

हाँ उसने कहा था हमसे
ख़ुशी चाहते हो तो
मिट जाओ तुम पहले
एक नहीं हजारों मिलेंगी
हमने यकीं न किया
दर ब दर भटकते रहे 
थक हार के जो चूर हुए
कितने लाचार पड़े थे हम
जिन्दगी और मौत में
कोई अंतर नहीं बचा था
बस एक जिस्म ज़रा सा हिल रहा था


कोई उधेर से गुज़रा बेसबब
राह भटका था शायद
एक पल देने की इल्तजा की हमसे
रास्ता बताने की गुज़ारिश की हमसे
हमने बता दिया पर यह क्या?
उसके चेहरे की मुस्कान
हमारे चेहरे पर भी खिल आई
 यह कैसी अनोखी ख़ुशी पायी


हैरान हुए हम सोचने लगे 
हमारे सामने रास्ते थे
और वोह राहगीर
उसकी मंजिल और हम
नहीं हम तोह कहीं नहीं थे वहां
 अब उनका कहा याद आया

हमने इस्सी रास्ते को अपनाया 
अरे हाँ भाई
'हम भी गाईड बन गए'

Wednesday, November 25, 2009

कब तक?







यह बेकसी और बेबसी का आलम कब तक?
उलझी उलझी जिन्दगी का आलम कब तक?


खोया खोया दिल बेसुध अपनी धड़कन से ही
दिल की इस आवारगी का आलम कब तक?


मन भागा भागा जाए कभी जहाँ कभी वहां
डूबती उभरती त्रिश्नागी का आलम कब तक?


महफिले मोहब्बत में छाया है अँधेरा
आखिर तेरी गुमशुदगी का आलम कब तक?


हर आहट पे मन चलदे तेरी ही ओर
मेरी इस दीवानगी का आलम कब तक?


अनजाने से बन के क्यूँ खड़े नज़रें चुरा के
क्यूँ ?... मेरी हैरानगी का आलम कब तक?

Thursday, November 19, 2009

सुरमई शाम

 














सुरमई शाम उत्तर आई है
आज फिर तेरी याद आई है


किसी अँधेरे से टकराई नज़रें
इंतज़ार में जो आँख उठाई है


हर चीज़ किनारा किये मुझसे
क्यूँ रूठी मुझसे खुदाई है


कोई आहट भी सुनाई न दे
हर तरफ फैली हुई तन्हाई है


तेरी यादों ने जो दी दस्तक
फिर आँख मेरी भर आई है


तुम आओगे तुम नहीं आओगे
दिल की दिल से हुई लड़ाई है


क्यूँ रूबरू है दिल तेरी चाहत से
क्या तुमको भी मेरी याद आई है

दरवाज़े पे कहीं तुम्ही तो नहीं
कोई फूलों सी महक आई है

Monday, November 16, 2009

उनकी यादों को ज़रा लौ देना



उनकी यादों को दिल में संजो लेना
मन के धागे में  ये फूल पिरो लेना


याद करके उन्हें जो मन हो भारी
ग़म न करना  थोडा सा रो लेना


है   दुनिया का  मेला  भरा  हुआ
कोई न मिले तो खुद को खो देना


बीते   हुए  पल  जो   दें  दस्तक
दहलीज़ पलकों की ज़रा भिगो देना



घबराना नहीं  देख दाग़  चाँद पर
उनको अश्कों  से अपने  धो देना


जलाना  दिल   अँधेरी  रातों में
उनकी  यादों  को ज़रा  लौ  देना


छोड़ कर कश्ती को माझी के सहारे
हो   बेफिक्र  ज़रा   सा  सो  लेना

Friday, November 13, 2009

मेरे अध्रों पर तेरा नाम आया




जब जब ग़म का पैगाम आया
मेरे अध्रों पर तेरा नाम आया


जब भी खिलते फूलों को देखा
लगा जैसे तेरा सलाम आया


बिखरी जुल्फें आँखों में नमी
तू होकर किस पे कुर्बान आया


जख्म दिया तुने रुला  दिया
पर सच था मेरा गुमान आया


क्यूँ तालियाँ हुई मेरे नाम
तेरा गीत जो मैंने गुनगुनाया


खुशबू गुलाबी और शबनमी  रूप तेरा
जैसे मेरी कज़ा का सामान आया


मैं दीवानी हुई तेरे नाम की 
पत्ते पत्ते से यह इल्जाम आया


उतार के नकाब हसीं जिस्म की
महफिल में होकर बेनाम आया



Tuesday, November 10, 2009

रात कहीं है खोई खोई



रात कहीं है खोई खोई
आधी जागी आधी सोई


हवा ने भर के सांस है रोकी
खो  न जाए उनकी खुश्बोई


चाँद को जैसे शर्म सी आई
उस से भी क्या हसीं है कोई


तारों को कुछ समझ न आए
उनकी खनक भी चोई चोई


वोह दूर खड़े पेडों के साए
लगे खड़े कोई ओड़े लोई


दुधिया चांदनी में नहा के
जैसे खिल रहा हर कोई


गिरता ओंस का कतरा कतरा
फूलों की खुशबू धोई धोई


खामोशी में गूंजे एक नगमा
कानों में गुदगुदी सी होई


मोहन की मुरली की धुन के
धागे में प्रकृति पिरोई

Monday, November 9, 2009

एक सन्देश



हटा दें सब अंधियारे  साफ़ आकाश करें
हुमने तुमने की गलती एक दूजे को माफ़  करें


नफरतें पनपती हैं नासमझी के बीज से
आओ इन नासमझियों का बीज नाश करें


हम नहीं टूटे है टूटा आइना
आओ इस कांच के टुकरों को साफ़  करें


आज सारी दुनिया का धर्म पैसा हो गया
आज इस फरेब का मिलके अवकाश करें


कौन है वोह क्या है उसका मज़हब
दहशत के व्यापारी की मिलके तलाश करें


किसी हिन्दू सिख या मुस्लिम पर नहीं
हम सब के मालिक पर विस्वाश करें 


Friday, November 6, 2009

उन तस्वीरों में मैं सामने लगी हूँ



जो तुने अपने ख्यालों से थीं खींची
उन तस्वीरों में मैं सामने लगी हूँ


जो भूली विसरी खोयी थीं कहीं
सोई यादों को मैं जगाने लगी हूँ


वो गीत जो तुम अक्सर सुनाया करते थे
उसी गीत को मैं गुनगुनाने लगी हूँ


तुने जो सपने दिखाए थे मुझको कभी
उन खाबोको दिल में सजाने लगी हूँ


चांदनी रातों में फूलों की महक संग
फिर खुशियों की महफिल लगाने लगी हूँ


चाहे तुम न मानो  मुझे अपना
आजकल मैं तुमपे हक जताने लगी हूँ


मेरी आँखों की मस्ती और शोख अदा
हाँ, इशारों से तुम्को बुलाने लगी हूँ


तुम जो चाहो तो करलो किनारा मुझसे
फिर न कहना मैं तुमको सताने लगी हूँ

मुझे आवाज़ दो



अगर तुम मेरे हो मुझे आवाज़ दो
जो दुखों के घेरे हो मुझे आवाज़ दो


मैं सदैव खडा तेरी राहों में
हमसफ़र बनाने को मुझे आवाज़ दो


मैं दूंगा तुम्हें हजारों खुशियाँ
ग़म अपना देने को मुझे आवाज़ दो


हर पल तत्पर सजाने को जीवन तेरा
मेरा हाथ पकड़ने को मुझे आवाज़ दो


सूरत नहीं तेरी ये है मेरा आइना
सच समझाने को मुझे आवाज़ दो


न समझो कभी खुद को निर्बल
बल अपना पाने को मुझे आवाज़ दो


दुनिया के झमेलों से जो घबराओ कभी
तुम को सहलाने को मुझे आवाज़ दो


कभी दिल बहलाने को मुझे आवाज़ दो
सच्चे प्रेम को पाने को मुझे आवाज़ दो

Thursday, November 5, 2009

फिर आसा की जीत हुई









 इस आस निरास के खेल में
फिर आसा की जीत हुई
दुखों की किश्ती डूब गयी
एक कली ख़ुशी की खिल गयी

एक नया सवेरा आया है
घर बाहर रोशनाया है
मन की कोंपल फूटी है
हरियाली फिर बिखर गयी

गर्मी की तपती धुप भी

दिल को भा रही है आज
मेरा रोम रोम खिल गया
जैसे पवन सी झुल गयी

कितने सारे फूल देखो खिल उठे
महक से आलम सराबोर है
तितलियों के झुरमत आये हैं
रंगों की होली खिल गयी

तेरी रहमत पे शुक्रगुजार हूँ
हैरान हूँ की तू मेरे कितना पास है
ख़ुशी और ग़म के परदों में
क्यूँ तेरी झलक नहीं मिल रही

Tuesday, November 3, 2009

मेरा भारत महान




 क्यूँ इतने बेगैरत हो गए हम, क्यूँ भूले अपना मान हैं
क्यूँ अक्सर व्यंग से कहते, 'मेरा भारत महान है'
हाँ, महान है भारत मेरा, इसके लिए कितनो ने खून बहाए
लाखों कुर्बानियां दी, तभी आज खुली सांस ले पाए
आज भी हम करोडों भारतीय, देश के लिए जी मर रहे
ज़मीं से लेके आसमान तक, हम अपनी लड़ाई लड़ रहे
आज भी हम भारतीय तैनात हैं, सामाजिक और भूगोलिक सीमायों पर
असर डाले जा रहे हम, आसमानों पर आत्मायों पर
दुनिया को सेहत का पाठ पड़ाते, भाव से जीना सिखाते
तकनीकी और विज्ञान के क्षेत्र में, आगे आगे हम बड़ते जाते
दुनिया में ख़ास मुकाम हमारा, 'जय भारत' का गूंजे नारा
इस माँ के सचे सपूतों ने, चाँद पर लिखा भारत प्यारा
दुनिया देखे और सब समझे, की हम कितने महान हैं
पर कुछ अपने घर के भेदी, इस मान को देते नुक्सान हैं
कुछ की संकुचित सोच के पीछे, खुद को घटिया कहने लगे
यहाँ ये बुराई वोह बुराई, हमही ढिढोरा पीटने लगे
क्यूँ उन भटके लोगों के पीछे, अपने देश को बुरा कहें हम
क्यूँ बदहाली का रोना रोयें, क्यूँ खुद को ही कोसा करें हम
हमको साथ निभाना होगा, उन सचे देश सिपाहियों का
उनके देश प्रेम और भक्ति का, उनकी अनथक मेहनतों का
हम सबको मिलकर करना होगा, अपने देश की खातिर काम
आओ हम सब गर्व से बोलें, 'मेरा भारत महान'

यह कैसी कशमकश


यह कैसी कशमकश है 
यह कैसी बेकरारी है
क्यूँ रुंधा सा है गला
क्यूँ सिर  पे एक कटारी है
कल जो बात थी ख़ुशी की
आज क्यूँ बनी वो भारी है
कहाँ जाऊं जाकर छुपुं
दिल क्यूँ बना भिखारी है
कुछ सुनना, देखना न चाहूं
किसके लिए यह दुनिया सारी है
रात भर बहाए थे आंसू
इस मन की सूखी फिर क्यारी है
न जानू कौन सी मंजिल है मेरी
कहाँ जाने की फिर तयारी है
यह कैसी कशमकश है
यह कैसी बेकरारी है

Saturday, October 31, 2009

तुमसे मिलके


तुमसे मिलके अपनी तन्हाई याद आई
अपने जख्मों की गहराई याद आई
जब विछर गए थे तुम मुझसे
मैं हुई थी शुदाई याद आई


रंग लेके उधर फूलों से
एक चादर ख़ुशी की ओड़ी थी
झुकी झुकी सी पलकों से
गिरती अश्कों की लड़ी याद आई


तुम पास ही थे मेरे कितने
पर तुमको अपना न सकी
फिर मिले तो किस हाल में
जब हुई मैं परायी याद आई


जानती हूँ बहुत उधार हो तुम
कोई रास्ता खोज निकालोगे
फिर गीत ख़ुशी के गुन्जेंगे
तुम संग होगी विदाई याद आई


तुमसे मिलके अपनी तन्हाई याद आई
अपने जख्मों की गहराई याद आई
जब विछर गए थे तुम मुझसे
मैं हुई थी शुदाई याद आई

Thursday, October 29, 2009

तोह कोई बात बने



दिल में तो सदा ही रहते हो
सामने आओ तो कोई बात बने
सोते जागते खाब दिखाते हो
ख़ाब में आओ तो कोई बात बने

क्यूँ रहते हो पर्दानाशीनो से
क्यूँ झलक दिखलाते नहीं
किसी रोज़ प्यारे मुख से
पर्दा हटाओ तोह कोई बात बने

देते हो ग़म जुदाई के
कभी आके पास न मिलते हो
इन जख्मों से न मौत आये
सामने आओ तो कोई बात बने

जल बिन मछली मर जाए
मैं बिन तेरे क्यूँ न मरूं
हर पल रहूँ सिसकती मैं
यह राज़ बताओ तो कोई बात बने

कब तक तरसोगे मुझको
कब अपना दरस दिखाओगे
इस से पहले की जान जाए
तुम आओ तोह कोई बात बने

Wednesday, October 28, 2009

न छेड़ो ........






 

न छेड़ो जख्मों को फूलों से
इनसे अंगार बरसने दो
न दर्द की कोई दवा करो
जो रिसते हैं तो रिसने दो


आज न तुम समझाओ मुझको
आज न मेरा गिला करो
आज जो आंसू बरस रहे हैं
मत रोको उन्हें बरसाने दो




अच्छा ही किया कुछ बुरा नहीं
जो मुझसे दूर चला गया
तुम्हें पाने की तम्मना थी
अब देखन को तरसने दो


ना मन की हुई ना तन की रही
जिन्दगी बीचो बीच फंसी
ना आ पाए ना ही जा पाए
अटकती है सांस अटकने दो


मत छेड़ो मेरी आँखों को
इनमें अभी चाहत बाकी है
कबसे प्यासी तरस रही हैं
आ जाओ अब ना तरसने दो
आ जाओ अब ना तरसने दो

तेरी याद



तेरी याद दिल  से भुलाएं कैसे?
एक और दिल को ठोकर लगायें कैसे?


जब तक जिन्दा हैं मेरे अरमान
तुझसे दूर जाएँ तो जाएँ कैसे?


मैं मेरी को खूब हवा दे दी
अपनी हस्ती को अब मिटायें कैसे?


फूलों के तराने गाते रहे
काँटों से दामन छुडाएं कैसे?


बचते रहे तेरी जुल्फ के जाल से
पर तेरे साए को भगाएं कैसे?


दिल के टुकडों से तसल्ली न हुई
खुद को सूली पे चाडाएं कैसे ?


अब चुप है दिल दर्द में भी
इसको रुलाएं तोह रुलाएं कैसे ?

Tuesday, October 27, 2009

फिर वोही तन्हाई है



फिर वोही वीरानगी फिर वोही तन्हाई है
जिन्दगी फिर उसी मोड़ पे ले आई है
कोई राह नज़र आती नहीं
साथ है तो बस परछाई है

न मैंने किया वादा कोई
न मैंने किया दावा कोई
फिर क्यूँ उदास दिल है आज
क्यूँ बेकरारी छाई है

एक पल चुरा के वक़्त से
सोचा था थोडा झूम लूं
कुछ छन की ख़ुशी के लिए
लम्बी उदासी पायी है

यह कैसी उलझन है
सुलझा न पाऊं मैं
लगता है कोई फंदा है
जिसमें जान फंसाई है

रोऊँ चीखुं चिल्लाओं
पर सुन ने वाला कौन है
वक़्त से ही खुलेंगी परतें
ये वक़्त की गहराई है

जब सारी दुनिया सोती है


जब सारी दुनिया सोती है
एक खिड़की कोई खुलती है
यादों के जुगनू आते हैं
और एक महफिल सी जुड़ती है

कुछ खट्टे मीठे पल उसमें
अंगडाइयां फिर लेते हैं
कभी ख़ुशी की बारिश होती है
कभी दर्द की आंधी झूलती है

जिस पल ने हंसाया था मुझको
अब आंसू बन के आया है
इस पल के अँधेरे में
उसकी ही नमी सी घुलती है

फिर याद किसी की आई है
फिर आँख से आंसू टपका है
पर देख के उन दो नैनो को
होंठों पे हंसी भी खिलती है

जब सारी दुनिया सोती है
एक खिड़की कोई खुलती है
यादों के जुगनू आते हैं
और एक महफिल सी जुड़ती है

Friday, October 23, 2009

तेरे ख्यालों में .....





तेरे ख्यालों में मघन
मुस्कुरा रही हूँ मैं
तेरी पवन के साज़ पे
तेरे गीत गा रही हूँ मैं

तुने जो मुझको छू लिया
मैं खिल के फूल हो गयी
तेरे बदन की खुशबू है
जिसको फैला रही हूँ मैं

दुःख में भी सुख में भी
तू मेरे साथ साथ है
हर रंग तेरा हर रूप तेरा
बस देखे जा रही हूँ मैं

कभी हवा का झोंका सा
कभी तू तपती धुप है
ऊँची नीची डगर है तू
देख डगमगा रही हूँ मैं

एक बार मैं भी चल सकूं
जो तेरा हाथ थाम के
उस एक पल की आस में
दिन गिनती जा रही हूँ मैं
दिन गिनती जा रही हूँ मैं