जो तुने अपने ख्यालों से थीं खींची
उन तस्वीरों में मैं सामने लगी हूँ
जो भूली विसरी खोयी थीं कहीं
सोई यादों को मैं जगाने लगी हूँ
वो गीत जो तुम अक्सर सुनाया करते थे
उसी गीत को मैं गुनगुनाने लगी हूँ
तुने जो सपने दिखाए थे मुझको कभी
उन खाबोको दिल में सजाने लगी हूँ
चांदनी रातों में फूलों की महक संग
फिर खुशियों की महफिल लगाने लगी हूँ
चाहे तुम न मानो मुझे अपना
आजकल मैं तुमपे हक जताने लगी हूँ
मेरी आँखों की मस्ती और शोख अदा
हाँ, इशारों से तुम्को बुलाने लगी हूँ
तुम जो चाहो तो करलो किनारा मुझसे
फिर न कहना मैं तुमको सताने लगी हूँ
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