Tuesday, November 10, 2009

रात कहीं है खोई खोई



रात कहीं है खोई खोई
आधी जागी आधी सोई


हवा ने भर के सांस है रोकी
खो  न जाए उनकी खुश्बोई


चाँद को जैसे शर्म सी आई
उस से भी क्या हसीं है कोई


तारों को कुछ समझ न आए
उनकी खनक भी चोई चोई


वोह दूर खड़े पेडों के साए
लगे खड़े कोई ओड़े लोई


दुधिया चांदनी में नहा के
जैसे खिल रहा हर कोई


गिरता ओंस का कतरा कतरा
फूलों की खुशबू धोई धोई


खामोशी में गूंजे एक नगमा
कानों में गुदगुदी सी होई


मोहन की मुरली की धुन के
धागे में प्रकृति पिरोई

1 comment:

  1. wah manjeet ji.. bahut khub sunder.. keep it up .. best of luck..

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