Thursday, November 5, 2009

फिर आसा की जीत हुई









 इस आस निरास के खेल में
फिर आसा की जीत हुई
दुखों की किश्ती डूब गयी
एक कली ख़ुशी की खिल गयी

एक नया सवेरा आया है
घर बाहर रोशनाया है
मन की कोंपल फूटी है
हरियाली फिर बिखर गयी

गर्मी की तपती धुप भी

दिल को भा रही है आज
मेरा रोम रोम खिल गया
जैसे पवन सी झुल गयी

कितने सारे फूल देखो खिल उठे
महक से आलम सराबोर है
तितलियों के झुरमत आये हैं
रंगों की होली खिल गयी

तेरी रहमत पे शुक्रगुजार हूँ
हैरान हूँ की तू मेरे कितना पास है
ख़ुशी और ग़म के परदों में
क्यूँ तेरी झलक नहीं मिल रही

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