Monday, November 30, 2009

महक जिन्दगी की




कमज़ोर थे हम लेकिन बलवान दिखाते रहे
वो थे महान अपनी कमजोरियां गिनाते रहे


छुपाते रहे चेहरा अपना हम  तो नकाब से
वोह झांक के आँखों में हाले दिल बताते रहे


आदतन हम चुप रहे जताया कोई हक नहीं
  वोह पूरे तन मन से हमें अपना बताते रहे


हम उनपे फ़िदा थे कह न पाए उनसे कभी
हम छुपाते रहे और वोह प्यार जताते रहे


दूरियां किस्मत समझे मिलना चाहा नहीं
हम घबराते रहे  और वोह पास आते रहे


संग संग उनके सपनों में ही गुज़रा किये
महक जिन्दगी की खाबों में ही पाते रहे

Friday, November 27, 2009

'हम भी गाईड बन गए'

हाँ उसने कहा था हमसे
ख़ुशी चाहते हो तो
मिट जाओ तुम पहले
एक नहीं हजारों मिलेंगी
हमने यकीं न किया
दर ब दर भटकते रहे 
थक हार के जो चूर हुए
कितने लाचार पड़े थे हम
जिन्दगी और मौत में
कोई अंतर नहीं बचा था
बस एक जिस्म ज़रा सा हिल रहा था


कोई उधेर से गुज़रा बेसबब
राह भटका था शायद
एक पल देने की इल्तजा की हमसे
रास्ता बताने की गुज़ारिश की हमसे
हमने बता दिया पर यह क्या?
उसके चेहरे की मुस्कान
हमारे चेहरे पर भी खिल आई
 यह कैसी अनोखी ख़ुशी पायी


हैरान हुए हम सोचने लगे 
हमारे सामने रास्ते थे
और वोह राहगीर
उसकी मंजिल और हम
नहीं हम तोह कहीं नहीं थे वहां
 अब उनका कहा याद आया

हमने इस्सी रास्ते को अपनाया 
अरे हाँ भाई
'हम भी गाईड बन गए'

Wednesday, November 25, 2009

कब तक?







यह बेकसी और बेबसी का आलम कब तक?
उलझी उलझी जिन्दगी का आलम कब तक?


खोया खोया दिल बेसुध अपनी धड़कन से ही
दिल की इस आवारगी का आलम कब तक?


मन भागा भागा जाए कभी जहाँ कभी वहां
डूबती उभरती त्रिश्नागी का आलम कब तक?


महफिले मोहब्बत में छाया है अँधेरा
आखिर तेरी गुमशुदगी का आलम कब तक?


हर आहट पे मन चलदे तेरी ही ओर
मेरी इस दीवानगी का आलम कब तक?


अनजाने से बन के क्यूँ खड़े नज़रें चुरा के
क्यूँ ?... मेरी हैरानगी का आलम कब तक?

Thursday, November 19, 2009

सुरमई शाम

 














सुरमई शाम उत्तर आई है
आज फिर तेरी याद आई है


किसी अँधेरे से टकराई नज़रें
इंतज़ार में जो आँख उठाई है


हर चीज़ किनारा किये मुझसे
क्यूँ रूठी मुझसे खुदाई है


कोई आहट भी सुनाई न दे
हर तरफ फैली हुई तन्हाई है


तेरी यादों ने जो दी दस्तक
फिर आँख मेरी भर आई है


तुम आओगे तुम नहीं आओगे
दिल की दिल से हुई लड़ाई है


क्यूँ रूबरू है दिल तेरी चाहत से
क्या तुमको भी मेरी याद आई है

दरवाज़े पे कहीं तुम्ही तो नहीं
कोई फूलों सी महक आई है

Monday, November 16, 2009

उनकी यादों को ज़रा लौ देना



उनकी यादों को दिल में संजो लेना
मन के धागे में  ये फूल पिरो लेना


याद करके उन्हें जो मन हो भारी
ग़म न करना  थोडा सा रो लेना


है   दुनिया का  मेला  भरा  हुआ
कोई न मिले तो खुद को खो देना


बीते   हुए  पल  जो   दें  दस्तक
दहलीज़ पलकों की ज़रा भिगो देना



घबराना नहीं  देख दाग़  चाँद पर
उनको अश्कों  से अपने  धो देना


जलाना  दिल   अँधेरी  रातों में
उनकी  यादों  को ज़रा  लौ  देना


छोड़ कर कश्ती को माझी के सहारे
हो   बेफिक्र  ज़रा   सा  सो  लेना

Friday, November 13, 2009

मेरे अध्रों पर तेरा नाम आया




जब जब ग़म का पैगाम आया
मेरे अध्रों पर तेरा नाम आया


जब भी खिलते फूलों को देखा
लगा जैसे तेरा सलाम आया


बिखरी जुल्फें आँखों में नमी
तू होकर किस पे कुर्बान आया


जख्म दिया तुने रुला  दिया
पर सच था मेरा गुमान आया


क्यूँ तालियाँ हुई मेरे नाम
तेरा गीत जो मैंने गुनगुनाया


खुशबू गुलाबी और शबनमी  रूप तेरा
जैसे मेरी कज़ा का सामान आया


मैं दीवानी हुई तेरे नाम की 
पत्ते पत्ते से यह इल्जाम आया


उतार के नकाब हसीं जिस्म की
महफिल में होकर बेनाम आया



Tuesday, November 10, 2009

रात कहीं है खोई खोई



रात कहीं है खोई खोई
आधी जागी आधी सोई


हवा ने भर के सांस है रोकी
खो  न जाए उनकी खुश्बोई


चाँद को जैसे शर्म सी आई
उस से भी क्या हसीं है कोई


तारों को कुछ समझ न आए
उनकी खनक भी चोई चोई


वोह दूर खड़े पेडों के साए
लगे खड़े कोई ओड़े लोई


दुधिया चांदनी में नहा के
जैसे खिल रहा हर कोई


गिरता ओंस का कतरा कतरा
फूलों की खुशबू धोई धोई


खामोशी में गूंजे एक नगमा
कानों में गुदगुदी सी होई


मोहन की मुरली की धुन के
धागे में प्रकृति पिरोई

Monday, November 9, 2009

एक सन्देश



हटा दें सब अंधियारे  साफ़ आकाश करें
हुमने तुमने की गलती एक दूजे को माफ़  करें


नफरतें पनपती हैं नासमझी के बीज से
आओ इन नासमझियों का बीज नाश करें


हम नहीं टूटे है टूटा आइना
आओ इस कांच के टुकरों को साफ़  करें


आज सारी दुनिया का धर्म पैसा हो गया
आज इस फरेब का मिलके अवकाश करें


कौन है वोह क्या है उसका मज़हब
दहशत के व्यापारी की मिलके तलाश करें


किसी हिन्दू सिख या मुस्लिम पर नहीं
हम सब के मालिक पर विस्वाश करें 


Friday, November 6, 2009

उन तस्वीरों में मैं सामने लगी हूँ



जो तुने अपने ख्यालों से थीं खींची
उन तस्वीरों में मैं सामने लगी हूँ


जो भूली विसरी खोयी थीं कहीं
सोई यादों को मैं जगाने लगी हूँ


वो गीत जो तुम अक्सर सुनाया करते थे
उसी गीत को मैं गुनगुनाने लगी हूँ


तुने जो सपने दिखाए थे मुझको कभी
उन खाबोको दिल में सजाने लगी हूँ


चांदनी रातों में फूलों की महक संग
फिर खुशियों की महफिल लगाने लगी हूँ


चाहे तुम न मानो  मुझे अपना
आजकल मैं तुमपे हक जताने लगी हूँ


मेरी आँखों की मस्ती और शोख अदा
हाँ, इशारों से तुम्को बुलाने लगी हूँ


तुम जो चाहो तो करलो किनारा मुझसे
फिर न कहना मैं तुमको सताने लगी हूँ

मुझे आवाज़ दो



अगर तुम मेरे हो मुझे आवाज़ दो
जो दुखों के घेरे हो मुझे आवाज़ दो


मैं सदैव खडा तेरी राहों में
हमसफ़र बनाने को मुझे आवाज़ दो


मैं दूंगा तुम्हें हजारों खुशियाँ
ग़म अपना देने को मुझे आवाज़ दो


हर पल तत्पर सजाने को जीवन तेरा
मेरा हाथ पकड़ने को मुझे आवाज़ दो


सूरत नहीं तेरी ये है मेरा आइना
सच समझाने को मुझे आवाज़ दो


न समझो कभी खुद को निर्बल
बल अपना पाने को मुझे आवाज़ दो


दुनिया के झमेलों से जो घबराओ कभी
तुम को सहलाने को मुझे आवाज़ दो


कभी दिल बहलाने को मुझे आवाज़ दो
सच्चे प्रेम को पाने को मुझे आवाज़ दो

Thursday, November 5, 2009

फिर आसा की जीत हुई









 इस आस निरास के खेल में
फिर आसा की जीत हुई
दुखों की किश्ती डूब गयी
एक कली ख़ुशी की खिल गयी

एक नया सवेरा आया है
घर बाहर रोशनाया है
मन की कोंपल फूटी है
हरियाली फिर बिखर गयी

गर्मी की तपती धुप भी

दिल को भा रही है आज
मेरा रोम रोम खिल गया
जैसे पवन सी झुल गयी

कितने सारे फूल देखो खिल उठे
महक से आलम सराबोर है
तितलियों के झुरमत आये हैं
रंगों की होली खिल गयी

तेरी रहमत पे शुक्रगुजार हूँ
हैरान हूँ की तू मेरे कितना पास है
ख़ुशी और ग़म के परदों में
क्यूँ तेरी झलक नहीं मिल रही

Tuesday, November 3, 2009

मेरा भारत महान




 क्यूँ इतने बेगैरत हो गए हम, क्यूँ भूले अपना मान हैं
क्यूँ अक्सर व्यंग से कहते, 'मेरा भारत महान है'
हाँ, महान है भारत मेरा, इसके लिए कितनो ने खून बहाए
लाखों कुर्बानियां दी, तभी आज खुली सांस ले पाए
आज भी हम करोडों भारतीय, देश के लिए जी मर रहे
ज़मीं से लेके आसमान तक, हम अपनी लड़ाई लड़ रहे
आज भी हम भारतीय तैनात हैं, सामाजिक और भूगोलिक सीमायों पर
असर डाले जा रहे हम, आसमानों पर आत्मायों पर
दुनिया को सेहत का पाठ पड़ाते, भाव से जीना सिखाते
तकनीकी और विज्ञान के क्षेत्र में, आगे आगे हम बड़ते जाते
दुनिया में ख़ास मुकाम हमारा, 'जय भारत' का गूंजे नारा
इस माँ के सचे सपूतों ने, चाँद पर लिखा भारत प्यारा
दुनिया देखे और सब समझे, की हम कितने महान हैं
पर कुछ अपने घर के भेदी, इस मान को देते नुक्सान हैं
कुछ की संकुचित सोच के पीछे, खुद को घटिया कहने लगे
यहाँ ये बुराई वोह बुराई, हमही ढिढोरा पीटने लगे
क्यूँ उन भटके लोगों के पीछे, अपने देश को बुरा कहें हम
क्यूँ बदहाली का रोना रोयें, क्यूँ खुद को ही कोसा करें हम
हमको साथ निभाना होगा, उन सचे देश सिपाहियों का
उनके देश प्रेम और भक्ति का, उनकी अनथक मेहनतों का
हम सबको मिलकर करना होगा, अपने देश की खातिर काम
आओ हम सब गर्व से बोलें, 'मेरा भारत महान'

यह कैसी कशमकश


यह कैसी कशमकश है 
यह कैसी बेकरारी है
क्यूँ रुंधा सा है गला
क्यूँ सिर  पे एक कटारी है
कल जो बात थी ख़ुशी की
आज क्यूँ बनी वो भारी है
कहाँ जाऊं जाकर छुपुं
दिल क्यूँ बना भिखारी है
कुछ सुनना, देखना न चाहूं
किसके लिए यह दुनिया सारी है
रात भर बहाए थे आंसू
इस मन की सूखी फिर क्यारी है
न जानू कौन सी मंजिल है मेरी
कहाँ जाने की फिर तयारी है
यह कैसी कशमकश है
यह कैसी बेकरारी है