आ गया, मुझको भी जीना आ गया
बेरहम जिंदगी का ज़हर पीना आ गया
क्या हुआ जो तुम हमारे पास नहीं
बंद करके आँखें तुझसे मिलना आ गया
उस मोड़ पर हम रह गए हैं बुत बनके
तेरा साया जहाँ से हाथ अपना छुड़ा गया
हंस हंस के दिल बहलाना दुनियां का
और अकेले में छुप छुपके रोना आ गया
अब और कोई भी दर्द, दर्द नहीं देता
तेरा ग़म जबसे दिल में समा गया
आज हर कमी को हमने अपना लिया
तुझको भी अब गैर समझना आ गया
bahut khubsurat racha manjeet ji...
ReplyDeleteband karke aankhe tujse milna aa gaya bahaut khubsoorat manjeej ji....vry deep
ReplyDelete"आपकी ग़ज़ल में मन के भावों को
ReplyDeleteअलफ़ाज़ का बहुत अच्छा लिबास पहनाने
की कामयाब कोशिश की गयी है ...
शेरो में जज़्बात का इज़हार भी बखूबी
हो रहा है ...
आज हर कमी को हमने अपना लिया
तुझको भी अब गैर समझना आ गया
ये शेर बहुत अच्छा कहा गया है
थोड़ा व्याकरण का भी ख़याल रक्खेंगी
तो और निखार आएगा"
'मुफ़लिस'