Monday, July 12, 2010

मैं यादों की परी हुई

अंदर सौ तूफ़ान भरे हैं सांस भी लूं तो डरी हुई
एक आह्ट से छलके ना प्रीत की गगरी भरी हुई


अंजानो की नगरी में मेरा मुख पहचाना सा
कितनो की आयें आवाजें खड़ी मैं सहमी डरी हुई
 

दरिया के बहते पानी संग सहजे ही मैं बह जाऊं 
गोरी चांदनी लिपटाऊ जब निकलूँ भीगी ठरी हुई
 

दूर देश कोई अपना रहता एक दिन खोज पता पाऊं   
जा पहुंचूं मैं उसके सन्मुख घूंघट तज निखरी हुई   
 

तेरी याद का काजल पाऊं क्यों फिर नैन ना मटकाऊँ
महक घुली साँसों में तेरी मैं यादों की परी हुई

2 comments:

  1. मनजीत जी,
    वाह !
    दरिया के बहते पानी संग मैं भी बह जाऊँ.....
    अगर हम चलती दुनिया के संग चलना सीख लेते हैं तो जिन्दगी ठीक से चलती रहती है ।

    आप को मेरे नए ब्लॉग के लिए आमंत्रण देते हुए....पता है

    http://hindihaiku.wordpress.com

    हरदीप

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