अंदर सौ तूफ़ान भरे हैं सांस भी लूं तो डरी हुई
एक आह्ट से छलके ना प्रीत की गगरी भरी हुई
अंजानो की नगरी में मेरा मुख पहचाना सा
कितनो की आयें आवाजें खड़ी मैं सहमी डरी हुई
दरिया के बहते पानी संग सहजे ही मैं बह जाऊं
गोरी चांदनी लिपटाऊ जब निकलूँ भीगी ठरी हुई
दूर देश कोई अपना रहता एक दिन खोज पता पाऊं
जा पहुंचूं मैं उसके सन्मुख घूंघट तज निखरी हुई
तेरी याद का काजल पाऊं क्यों फिर नैन ना मटकाऊँ
महक घुली साँसों में तेरी मैं यादों की परी हुई
nice lines...
ReplyDeleteमनजीत जी,
ReplyDeleteवाह !
दरिया के बहते पानी संग मैं भी बह जाऊँ.....
अगर हम चलती दुनिया के संग चलना सीख लेते हैं तो जिन्दगी ठीक से चलती रहती है ।
आप को मेरे नए ब्लॉग के लिए आमंत्रण देते हुए....पता है
http://hindihaiku.wordpress.com
हरदीप