बारिश की छम छम जैसे मोती बरस रहे हैं
बादल के पैरों में घुंघरू से बंध गए हैं
गरज गरज के शोर मचाये छम छम नाच दिखाए
पेड़ भी झूमे हलके हलके हो के मघन खड़े हैं
और जोर से और जोर से आज तो मेघा बरसो रे
प्यासी धरती के आँचल पे कितने दाग़ पड़े हैं
बरसो ना केवल तन पे मेरे मन में भी बरसो
विक्कारों की अगन से कितने छाले पड़े हैं
कुछ रहमत उनपर बरसाओ जिनके दिल में दर्द नहीं
कितने मासूमों के जीवन उनके क़दमों तले हैं
GAZAB KI NAZM ..KYA KAHNE , SHABD AUR BHAAV JAISE EK DUJE KE LIYE HI BANE HO .. WAAH JI WAAH , BADHAYI KABUL KARE..
ReplyDeleteVIJAY
आपसे निवेदन है की आप मेरी नयी कविता " मोरे सजनवा" जरुर पढ़े और अपनी अमूल्य राय देवे...
http://poemsofvijay.blogspot.com/2010/08/blog-post_21.html