Wednesday, February 10, 2010

दिल आवारा सोच आवारा


दिल आवारा सोच आवारा
है हर तरफ झूठा पसारा

किसको दिल की बात कहें अब
आज बेगाना  है जग सारा

किससे करें शिकायत दिल की
इसको इसके ग़म ने मारा 

कोई चांदनी कोई बहारें 
हमने चुना है अश्रु  खारा

तेरी नज़र ने मन पिघलाया 
जैसे पिघला जाए पारा

किनारे पर भी खड़े प्यासे
बहती जाए निर्मल धारा

भरते रहे रेत की मुट्ठी
ऐसे गुज़रा वक़्त हमारा 

इतने में भी चैन ना आए
दे जाए कोई दर्द उधारा

1 comment:

  1. भरते रहे रेत की मुट्ठी
    ऐसे गुज़रा वक़्त हमारा

    Manjeet bahut badiya

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