जीना मुझको सिखा गया कोई
दिल में मेरे समा गया कोई
उनकी फूलों के साथ तक ना बनी
यहाँ शूलों से निभा गया कोई
मेरा साया मुझे नहीं दिखता
क्या बिछड़ कर चला गया कोई
बेखबर अपने आप से थे हम
खुद से तारुफ़ करा गया कोई
आँख में बनके एक आंसू सा
मेरी पलकों पे आ गया कोई
आज आँगन मेरा खुशगवार सा है
एक महक बनके आ गया कोई
नी अज कोई आया
ReplyDeleteआया...
साडे विहड़े....
बहुत ही बढ़िया..
मनजीत जी...क्या बात है!!!
ओये! बल्ले ओये!
ReplyDeleteवधाइयां!
आशीष
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पहला ख़ुमार और फिर उतरा बुखार!!!