क्यूँ मनवा डूबा जाए रे
कौनसा गम इसे सताए रे
पत्थर से भी कड़ा है यूँ
आँखों से जल बहाए रे
दीवाना पतझड़ों का यह
फूलों को भी ललचाये रे
कानों का कच्चा है दिल तो
संग हवायों के गाये रे
भंवर है दिखता भंवरा
ये कैसे जाल विछाये रे
मुट्ठी हूँ जैसे रेत की
भर भर के फिसलाए रे
ये खुशबू तेरी कामिनी
फिरे मुझको बहकाए रे
Yeh Dil... Han...Yeh Dil...
ReplyDeleteDeevana kahe patjhadon ka...
agar phoolon ko lalchaye ye...
yeh dil....
Hardeep