Thursday, April 29, 2010

क्यूँ मनवा डूबा जाए रे

क्यूँ मनवा डूबा जाए रे
कौनसा गम इसे सताए रे

पत्थर से भी कड़ा है यूँ
आँखों से जल बहाए रे
 

दीवाना पतझड़ों का यह
फूलों को भी ललचाये रे
 

कानों का कच्चा है दिल तो
संग हवायों के गाये रे
 

भंवर है दिखता भंवरा
ये कैसे जाल विछाये रे
 

मुट्ठी हूँ जैसे रेत की
भर भर के फिसलाए रे
 

ये खुशबू तेरी कामिनी  
फिरे मुझको बहकाए रे

1 comment:

  1. Yeh Dil... Han...Yeh Dil...
    Deevana kahe patjhadon ka...
    agar phoolon ko lalchaye ye...
    yeh dil....

    Hardeep

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