Monday, November 30, 2009

महक जिन्दगी की




कमज़ोर थे हम लेकिन बलवान दिखाते रहे
वो थे महान अपनी कमजोरियां गिनाते रहे


छुपाते रहे चेहरा अपना हम  तो नकाब से
वोह झांक के आँखों में हाले दिल बताते रहे


आदतन हम चुप रहे जताया कोई हक नहीं
  वोह पूरे तन मन से हमें अपना बताते रहे


हम उनपे फ़िदा थे कह न पाए उनसे कभी
हम छुपाते रहे और वोह प्यार जताते रहे


दूरियां किस्मत समझे मिलना चाहा नहीं
हम घबराते रहे  और वोह पास आते रहे


संग संग उनके सपनों में ही गुज़रा किये
महक जिन्दगी की खाबों में ही पाते रहे

4 comments:

  1. छुपाते रहे चेहरा अपना हम तो नकाब से
    वोह झांक के आँखों में हाले दिल बताते रहे....
    .very nice...

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  2. एक सदी जितना पुराना और अनमोल खजाना है, शब्द और अनुभूति के घने साए मुस्कुराते हैं आपकी रचनाओं में, सोचा था कभी फुरसत में पढूंगा आज पढ़ ही लिया. बेशक इस दरिया को सदा बहते रहना चाहिए.

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  3. bahut hi sunder or kabile tarif likha hai... keep it up and up...

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