Monday, November 9, 2009

एक सन्देश



हटा दें सब अंधियारे  साफ़ आकाश करें
हुमने तुमने की गलती एक दूजे को माफ़  करें


नफरतें पनपती हैं नासमझी के बीज से
आओ इन नासमझियों का बीज नाश करें


हम नहीं टूटे है टूटा आइना
आओ इस कांच के टुकरों को साफ़  करें


आज सारी दुनिया का धर्म पैसा हो गया
आज इस फरेब का मिलके अवकाश करें


कौन है वोह क्या है उसका मज़हब
दहशत के व्यापारी की मिलके तलाश करें


किसी हिन्दू सिख या मुस्लिम पर नहीं
हम सब के मालिक पर विस्वाश करें 


2 comments:

  1. bahut khub manjeet.... kafi behtrin or aachi baate likhi hai... bahut khub... great work..

    ReplyDelete
  2. ssa manjeet ji sohan likhya hai tusi accha rachna maujuda dharam de saroop ate os te kabaz siyasat rahi dharam di galt varton bare

    ReplyDelete