मेरे सजदे न कुछ गुज़ार गए
गए वो हर कसम उतार गए
चाँद अपनी हथेली पर रखा
हम जब भी जिस्म के पार गए
उम्र गुजरी जो रंग छुपाने में
करके हमको दाग़दार गए
किस्मत लकीरें न मिट पायीं
दूर तक रोते भी ज़ार ज़ार गए
बाग़ की कलियाँ खिलेंगी कैसे
बागबान जिसके हो फरार गए
अपनी हस्ती पे था गरूर हमें
तेरी एक ही नज़र में हार गए
अधुरा सा सपना आधी सी जाँ
गए वो भी कर तार तार गए
ना मंजिल ना कोई हमराही
गए हर राह बेकरार गए
क्यूँ इंतज़ार है उनका 'महक'
वो जो दिल से हमें विसार गए
ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.
ReplyDeleteवाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ
ਜੇਹੜੇ ਦਿਨ ਦਾ ਵਿਛਡ ਗਯਾ ਤੂ, ਨੀ ਮੈਂ ਕਾਖਾ ਵਾਂਗੂ ਰੁਲ ਗਯੀ...
ReplyDeleteਏਕ ਮਹਿਯਾ ਤੇਰੀ ਯਾਦ ਨਾ ਭੁਲਦੀ ਬਾਕੀ ਹਰ ਸ਼ੇ ਜਾਗ ਦੀ ਭੁਲ ਗਯੀ!
ਸਾਨੂ ਭੁਲ ਗਯੀ ਖੁਦਾਈ ਚੰਨਾ ਸਾਰੀ, ਤੇਰੇ ਨੀ ਖਯਾਲ ਭੁਲਦੇ!
आपकी कविता पढ़ के, नुसरत याद आये.... और सोचा पंजाबी पर भी हाथ साफ़ कर लूं.
आशीष
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अपनी हस्ती पे था गुरूर हमें। तेरी एक ही नज़र में हार गये।
ReplyDeleteख़ूबसूरत शे"र। मक्ता में वो हमें विसार गये "विसार" अन्य भाषाओं में चलन में होगा शायद ,मगर हिन्दी में सामान्यत:"बिसार" प्रचलन में है।