Friday, July 30, 2010

दिल है पर जज़्बात गुम

दिल है पर जज़्बात गुम
हाल रहें हालात गुम

हम आमने तुम सामने 
और वस्लों की रात गुम
 
छह सुर संग के साधे
पर सुर नंबर सात गुम
 

शम्मा अँधेरे में रोशन
रोशनी की बात गुम
 

जंगल में मंगल हुए
आदमी की ज़ात गुम
 

दूरियों में ख्याल था
पास तो ख्यालात गुम
 

रात तो दुल्हन बनी
खाबों की बरात गुम
 

कुछ तो दिल में है 'महक'
हो जाती है बेबात गुम





3 comments:

  1. बहुत दिनों बाद इतनी बढ़िया कविता पड़ने को मिली.... गजब का लिखा है

    ReplyDelete
  2. आपका तो बहुत कुछ खो गया है!
    किसी ने चुराया तो नहीं?
    किसी पर शक?
    तफ्तीश करें?
    हा हा हा....
    खूबसूरत कविता!

    ReplyDelete