दिल है पर जज़्बात गुम
हाल रहें हालात गुम
हम आमने तुम सामने
और वस्लों की रात गुम
छह सुर संग के साधे
पर सुर नंबर सात गुम
शम्मा अँधेरे में रोशन
रोशनी की बात गुम
जंगल में मंगल हुए
आदमी की ज़ात गुम
दूरियों में ख्याल था
पास तो ख्यालात गुम
रात तो दुल्हन बनी
खाबों की बरात गुम
कुछ तो दिल में है 'महक'
हो जाती है बेबात गुम
बहुत दिनों बाद इतनी बढ़िया कविता पड़ने को मिली.... गजब का लिखा है
ReplyDeleteआपका तो बहुत कुछ खो गया है!
ReplyDeleteकिसी ने चुराया तो नहीं?
किसी पर शक?
तफ्तीश करें?
हा हा हा....
खूबसूरत कविता!
just beautiful!
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