इस शहर में
इस शहर में तेरे नाम के अफसाने बहुत हैं
कोई अपना नहीं तो क्या बेगाने बहुत हैं
सुन सुन के तेरा नाम जीते भी हैं मरते भी
मेरे लड़खड़ाने को यहाँ महखाने बहुत हैं
तेरे सामने आके होश कहाँ रहता मुझको
वरना तो सुनाने को दास्ताने बहुत हैं
जाने कब दिल में तेरे प्यार की सुबह होगी
इंतज़ार में गुज़रे अब तक ज़माने बहुत हैं
तू जरुर किसी खुशबू की परछाई होगा
तेरे क़दमों में विच्छे चमन सुहाने बहुत हैं
मैं हारा सा मुसाफिर तेरे प्यार की राहों का
एक से एक इस जहाँ में तेरे दीवाने बहुत हैं
सीने से लगाये रखे आंसूयों से सींचे हमने
महक बाकी है तेरी इनमे ख़त पुराने बहुत हैं
इस शहर में तेरे नाम के अफसाने बहुत हैं
ReplyDeleteकोई अपना नहीं तो क्या बेगाने बहुत हैं
सुन सुन के तेरा नाम जीते भी हैं मरते भी
मेरे लड़खड़ाने को यहाँ महखाने बहुत हैं
......vaah, bahut khub.
krantidut.blogspot.com
जाने कब दिल में तेरे प्यार की सुबह होगी
ReplyDeleteइंतज़ार में गुज़रे अब तक ज़माने बहुत हैं
ग़ज़ल के शेर पढ़ कर अच्छा लगा
आपकी खयालात की पकड़ बहुत अच्छी है
शब्दों के बुनावट भी मन-भावन है
बधाई स्वीकारें
Kya baat hai bahut sunder Manjeet
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