Thursday, February 11, 2010

इस शहर में


इस शहर में तेरे नाम के अफसाने बहुत हैं
कोई अपना नहीं तो क्या बेगाने  बहुत हैं

सुन सुन के तेरा नाम जीते भी हैं मरते भी
मेरे लड़खड़ाने को यहाँ महखाने बहुत हैं

तेरे सामने आके  होश कहाँ रहता मुझको
वरना तो सुनाने को दास्ताने बहुत हैं

जाने कब दिल में तेरे प्यार की सुबह होगी
इंतज़ार में गुज़रे अब तक ज़माने बहुत हैं

तू जरुर किसी खुशबू की परछाई होगा
तेरे क़दमों में विच्छे चमन सुहाने बहुत हैं

मैं हारा सा मुसाफिर तेरे प्यार की राहों का
एक से एक इस जहाँ में तेरे दीवाने बहुत हैं

सीने से लगाये रखे आंसूयों से सींचे हमने
महक बाकी है तेरी इनमे ख़त पुराने बहुत हैं

3 comments:

  1. इस शहर में तेरे नाम के अफसाने बहुत हैं
    कोई अपना नहीं तो क्या बेगाने बहुत हैं

    सुन सुन के तेरा नाम जीते भी हैं मरते भी
    मेरे लड़खड़ाने को यहाँ महखाने बहुत हैं
    ......vaah, bahut khub.

    krantidut.blogspot.com

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  2. जाने कब दिल में तेरे प्यार की सुबह होगी
    इंतज़ार में गुज़रे अब तक ज़माने बहुत हैं

    ग़ज़ल के शेर पढ़ कर अच्छा लगा
    आपकी खयालात की पकड़ बहुत अच्छी है
    शब्दों के बुनावट भी मन-भावन है
    बधाई स्वीकारें

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