Saturday, July 24, 2010

भीगे अक्षर

भीगे अक्षर ओंस के कतरे
सोच धरा पे बिखरे बिखरे 

बादल पवन पंखेरू जैसे
नील गगन पे किसने चित्रे

बहते उड़ते खिलखिलाते
हर मोड़ पे निखरे निखरे

फूल से कोमल कांच सरीखे
कैसे कैसे जिया में उतरे

पग पग छेड़ें करें गुदगुदी 
यहाँ वहां रहते हैं उकरे

मायाजाल ये डालें ऐसा
उफ़ मेरे ना मुख से उचरे 
 
पिघली रहती इनके गिरदे
'महक' भी अक्षरमाला सिमरे

5 comments:

  1. आह बहुत खूबसूरत कविता लिखी

    ReplyDelete
  2. दिल की गहराई से लिखी गयी एक सुंदर रचना , बधाई

    ReplyDelete
  3. सुन्दर भावपूर्ण रचना, बधाई।

    ReplyDelete