फिर वोही वीरानगी फिर वोही तन्हाई है
जिन्दगी फिर उसी मोड़ पे ले आई है
कोई राह नज़र आती नहीं
साथ है तो बस परछाई है
न मैंने किया वादा कोई
न मैंने किया दावा कोई
फिर क्यूँ उदास दिल है आज
क्यूँ बेकरारी छाई है
एक पल चुरा के वक़्त से
सोचा था थोडा झूम लूं
कुछ छन की ख़ुशी के लिए
लम्बी उदासी पायी है
यह कैसी उलझन है
सुलझा न पाऊं मैं
लगता है कोई फंदा है
जिसमें जान फंसाई है
रोऊँ चीखुं चिल्लाओं
पर सुन ने वाला कौन है
वक़्त से ही खुलेंगी परतें
ये वक़्त की गहराई है
परछाईं तो साथ है अच्छा है आगाज।
ReplyDeleteगहराई जो वक्त की दिल की है आवाज।।
सादर
श्यामल सुमन
www.manoramsuman.blogspot.com
एक पल चुरा के वक़्त से
ReplyDeleteसोचा था थोडा झूम लूं
कुछ छन की ख़ुशी के लिए
लम्बी उदासी पायी है
bahut dil e likha hai apne...dil tak jati hai iski mahak..hai na..
dard se bahar aane ka acha rasta
कुछ छन की ख़ुशी के लिए
ReplyDeleteलम्बी उदासी पायी है
हकीकत है जिंदगी की यही..और जरूरत भी!!
yade jeevan ka khubsurat bhag hai.
ReplyDeleteyadon ki mahak sada sath rakhen.
ReplyDeleteब्लॉग जगत में स्वागत और बधाई
ReplyDeleteएक पल चुरा के वक़्त से
ReplyDeleteसोचा था थोडा झूम लूं
कुछ छन की ख़ुशी के लिए
लम्बी उदासी पायी है.....bahut khoob yar ...likhte raho ...aapki alag pahchan hai aapke vicharon main...
JAi HO mangalmay ho
हुज़ूर आपका भी एहतिराम करता चलूं.....
ReplyDeleteइधर से गुज़रा था, सोचा सलाम करता चलूं
www.samwaadghar.blogspot.com
ha.n pal bhar ki khushi hazar gam bhi de jati hai acchhi rachna badhayi.
ReplyDeleteyadon kimahak men jeene ke liye badhayee.
ReplyDeleteकोई राह नज़र आती नहीं
ReplyDeleteसाथ है तो बस परछाई है
सुन्दर ।
आप अच्छा लिखती हैं ।
ब्लॉग परिवार में स्वागत है!लिखते और पढ़ते रहिये...!अपने विचार रखिये..
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