Tuesday, October 27, 2009

फिर वोही तन्हाई है



फिर वोही वीरानगी फिर वोही तन्हाई है
जिन्दगी फिर उसी मोड़ पे ले आई है
कोई राह नज़र आती नहीं
साथ है तो बस परछाई है

न मैंने किया वादा कोई
न मैंने किया दावा कोई
फिर क्यूँ उदास दिल है आज
क्यूँ बेकरारी छाई है

एक पल चुरा के वक़्त से
सोचा था थोडा झूम लूं
कुछ छन की ख़ुशी के लिए
लम्बी उदासी पायी है

यह कैसी उलझन है
सुलझा न पाऊं मैं
लगता है कोई फंदा है
जिसमें जान फंसाई है

रोऊँ चीखुं चिल्लाओं
पर सुन ने वाला कौन है
वक़्त से ही खुलेंगी परतें
ये वक़्त की गहराई है

12 comments:

  1. परछाईं तो साथ है अच्छा है आगाज।
    गहराई जो वक्त की दिल की है आवाज।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  2. एक पल चुरा के वक़्त से
    सोचा था थोडा झूम लूं
    कुछ छन की ख़ुशी के लिए
    लम्बी उदासी पायी है

    bahut dil e likha hai apne...dil tak jati hai iski mahak..hai na..
    dard se bahar aane ka acha rasta

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  3. कुछ छन की ख़ुशी के लिए
    लम्बी उदासी पायी है

    हकीकत है जिंदगी की यही..और जरूरत भी!!

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  4. yade jeevan ka khubsurat bhag hai.

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  5. ब्लॉग जगत में स्वागत और बधाई

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  6. एक पल चुरा के वक़्त से
    सोचा था थोडा झूम लूं
    कुछ छन की ख़ुशी के लिए
    लम्बी उदासी पायी है.....bahut khoob yar ...likhte raho ...aapki alag pahchan hai aapke vicharon main...

    JAi HO mangalmay ho

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  7. हुज़ूर आपका भी एहतिराम करता चलूं.....
    इधर से गुज़रा था, सोचा सलाम करता चलूं

    www.samwaadghar.blogspot.com

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  8. ha.n pal bhar ki khushi hazar gam bhi de jati hai acchhi rachna badhayi.

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  9. कोई राह नज़र आती नहीं
    साथ है तो बस परछाई है
    सुन्दर ।
    आप अच्छा लिखती हैं ।

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  10. ब्लॉग परिवार में स्वागत है!लिखते और पढ़ते रहिये...!अपने विचार रखिये..

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