Wednesday, October 28, 2009

न छेड़ो ........






 

न छेड़ो जख्मों को फूलों से
इनसे अंगार बरसने दो
न दर्द की कोई दवा करो
जो रिसते हैं तो रिसने दो


आज न तुम समझाओ मुझको
आज न मेरा गिला करो
आज जो आंसू बरस रहे हैं
मत रोको उन्हें बरसाने दो




अच्छा ही किया कुछ बुरा नहीं
जो मुझसे दूर चला गया
तुम्हें पाने की तम्मना थी
अब देखन को तरसने दो


ना मन की हुई ना तन की रही
जिन्दगी बीचो बीच फंसी
ना आ पाए ना ही जा पाए
अटकती है सांस अटकने दो


मत छेड़ो मेरी आँखों को
इनमें अभी चाहत बाकी है
कबसे प्यासी तरस रही हैं
आ जाओ अब ना तरसने दो
आ जाओ अब ना तरसने दो

2 comments: