Tuesday, January 11, 2011

अपनी हस्ती को मिटा के चले

अपनी हस्ती को मिटा के चले
सजदे में सिर झुका के चले

डाली एक निगाह जो खुद पे
नज़रों से नज़र चुरा के चले

अपनी आहों की आघोष में
तेरी तस्वीर छुपा के चले

तेरी रौशनी से ले एक किरण
अँधा मन रोशना के चले
 

तू दरिया है और सागर भी 
कतरे में हम समा के चले

ऐसी तेरे इश्क की धुन लगी
कि हर नफरत भुला के चले

हम तो तुझमे ही खोये रहे
कहते दिल में बसा के चले


2 comments:

  1. हम तो तुझमे ही खोये रहे
    कहते दिल में बसा के चले
    bahut khoob....

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  2. "ऐसी तेरे इश्क की धुन लगी
    कि हर नफरत भुला के चले"

    बहुत सुंदर

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