Monday, January 25, 2010

मन बावरा कुछ समझ ना पाया है



धुआं धुआं सा हर तरफ छाया है
ख्याल जो उस रौशनी का आया है

तीर-ए-नज़र का निशाना हुए हम
दाग़-ए-मोहब्बत दिल पे लगाया है

नज़र से ओझल तो अँधेरा छा गया
वोह जैसे माहताब का साया है 

फिर अक्स किसी नूर-ए-जहाँ का
दिल के आईने में उत्तर आया है

ग़म तो था जब दूर वो था हमसे
आज खोकर भी हमने उसे पाया है

बन भँवरा खिलाता कांटे सा चुभता भी
हर कहीं प्यार उसका ही समाया है

खुद से दूर कीया बेचैन कीया हमको
रोये तो उसने ही चुप कराया है

इश्क क्या है कोई रोग है या दवा 
मन बावरा कुछ समझ ना पाया है

4 comments:

  1. really so beautiful.... great written...

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  3. इश्क क्या है कोई रोग है या दवा
    मन बावरा कुछ समझ ना पाया है...

    लाजवाब शेर है .......... पूरी ग़ज़ल कमाल की बनी है ........

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  4. धुआं धुआं सा हर तरफ छाया है
    ख्याल जो उस रौशनी का आया है

    aaap hamesha hi mast likhti hai.

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