Tuesday, January 19, 2010

कैसे यह मेरी जुबान दिल की बातें समझाए


वोह क्या समझेंगे जो हम ही ना समझ पाए
हंसाने पे रो दिए और जख्मों पे मुस्कुराये

दाग़ ए दिल छुपा लिया खिलाके होंठ शबनमी 
नादां समझे या बेईमान जाने क्यूँ वो गुस्साए 

कुछ आदत थी हमारी कुछ उनकी मजबूरी थी
दो कदम बढाकर फिर उसी मोड़ पे लौट आये

वो शिकवे करें इलज़ाम भी हमें देते रहे 
हमने मोहब्बत की उनसे बिना कुछ भी जताए

चाहें हमको पर हमसे और क्या चाहते हैं ?
दिन रात गुज़ारे हैं हमने इन्ही प्रशनों के साए 

दिल की बातें दिल कहता सुनता समझता है
कैसे यह  मेरी जुबान दिल की बातें समझाए


1 comment:

  1. दाग़ ए दिल छुपा लिया खिलाके होंठ शबनमी
    नादां समझे या बेईमान जाने क्यूँ वो गुस्साए

    wah manjeet fantastic ...

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