मेरे सजदे न कुछ गुज़ार गए
गए वो हर कसम उतार गए
चाँद अपनी हथेली पर रखा
हम जब भी जिस्म के पार गए
उम्र गुजरी जो रंग छुपाने में
करके हमको दाग़दार गए
किस्मत लकीरें न मिट पायीं
दूर तक रोते भी ज़ार ज़ार गए
बाग़ की कलियाँ खिलेंगी कैसे
बागबान जिसके हो फरार गए
अपनी हस्ती पे था गरूर हमें
तेरी एक ही नज़र में हार गए
अधुरा सा सपना आधी सी जाँ
गए वो भी कर तार तार गए
ना मंजिल ना कोई हमराही
गए हर राह बेकरार गए
क्यूँ इंतज़ार है उनका 'महक'
वो जो दिल से हमें विसार गए